पाप माने क्या? क्या मात्र स्त्रियाँ ही पापी हैं?

पाप माने क्या? क्या मात्र स्त्रियाँ ही पापी हैं?

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत || १, ४० ||

कुल के नाश से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं तथा धर्म का नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है। — श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १, श्लोक ४०

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः। स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः || १, ४१ ||

हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ अत्यंत दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है। — श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १, श्लोक ४१

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, ये धर्म नष्ट हो जाने की और पाप बढ़ने से स्त्रियों के दूषित हो जाने की बात को वर्तमान समय में कैसे समझा जाए? और सिर्फ स्त्रियों की बात क्यों हो रही है, पुरुष पापी क्यों नहीं हैं? पहली बार श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ रही हूँ और आपके साथ पढ़ने को बहुत इच्छुक हूँ।

आचार्य प्रशांत: न स्त्री पापी है, न पुरुष पापी है; जो ऐसा कुतर्क दे, वो पापी है। अब अर्जुन को तो कोई प्यादा चाहिए चाल चलने के लिए, तो उसने स्त्रियों को प्यादा बना लिया। अर्जुन के मन में स्त्रियों के कल्याण की भावना अचानक थोड़े ही उदित हो गई है, कि आया था रथ पर चढ़कर, कवच पहनकर, गांडीव लेकर, शंख लेकर लड़ाई करने, और तभी याद आ गया, “अरे, स्त्रियों का क्या होगा?” ये सब बहाने हैं, इनको गंभीरता से मत लीजिए।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org