Sitemap

Member-only story

पाप और पुण्य क्या हैं?

पुण्यात्मा होते हैं जो बंधनों को काट लेते हैं और कोई पुण्य होता ही नहीं बन्धनों को काटने के अलावा।

पाप और पुण्य का अपने आप में कोई आधारभूत अनुभव आपको हो नहीं सकता। अनुभव हमेशा होता है बंधन का। बंधन ज़्यादा मौलिक बात है, पाप-पुण्य नहीं। तो बंधन से शुरू करिए क्योंकि बंधन आप जानते हैं। बंधन इसलिए जानते हैं क्योंकि वो आपके अनुभव में है। बंधन से शुरू करिए और कहिए कि जो बन्धनों को बढ़ाए सो पाप। जो बन्धनों को काटे सो पुण्य। पाप-पुण्य की यही परिभाषा है। इससे ज़्यादा खरी परिभाषा पाप-पुण्य की आपको मिलेगी नहीं।

जो कुछ तुम्हें बंधन से बचाता हो वो पुण्य है। और किसी भी स्थिति में, किसी भी जगह पर जो भी चीज़ तुम्हें और ज़्यादा बाँध देती हो, जकड़ देती हो, सीमित कर देती हो, जान लेना वही पाप है। उस पाप से बचना। अपने जीवन में कुछ और मत देखिए, बंधन देखिए। बंधन पाप है और बंधन चुनाव है। पाप-पुण्य आपके चुनाव की बात है। मत चुनिए।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

No responses yet