पानी में घर मीन का, काहे मरे पियास

आशा तो गुरुदेव की, दूजी आस निरास।

पानी में घर मीन का, क्यों मरे पियास।।

कबीर

वक्ता: मुदित जी का सवाल है कि, अष्टावक्र जैसे ज्ञानियों ने कहा है कि आशा ही परमम दुखम। और दूसरी ओर कबीर कह रहे हैं कि आशा तो गुरुदेव की, दूजी आस नीरास। ये बातें तो विरोधी लगती हैं। आशा, क्या आशा मन का विचलन नहीं है?और अगर है, तो फिर ये कैसी बात कि आशा तो गुरुदेव की।

मुदित जी आशा का दो तरफा आशय है। एक आशा होती है, एक कामना होती है कि और-और इकठ्ठा करता चला जाऊं, संसार से और ज़्यादा पाता चला जाऊं। ये पैदा होती है इस भाव से कि कोई कमी है मेरे भीतर। केंद्र से छिटके हुए मन को ये एहसास तो होता है कि कुछ छूट गया है, कोई भूल हो गई है, कोई कमी आ गई है। ये एहसास तो उसे होता है, पर ध्यान की अनुपस्थिति में साफ़-साफ़ समझ नहीं पाता कि क्या गलती हुई। क्यों एक खालीपन, सूनापन महसूस हो रहा है। कभी थोड़ा ध्यान दिया भी, कभी ये बात दिखी भी कि अपने घर से बिछड़ा हुआ हूँ, तो भी श्रद्धा के अभाव में ये हिम्मत नहीं हुई की कह सके कि घर वापस लौटना है। ऐसे मन के पास एक ही विकल्प रह जाता है कि अपने सूनेपन को संसार से भरे।

सूनापन है, सूनेपन की स्पष्ट प्रतीति है। कुछ कमी है, जीवन में कुछ, गायब है, बात पूरी बैठ नहीं रही है। कहीं कुछ है जो चुभ रहा है लगातार। भर-भर के भी रिक्तता का अनुभव है। ये हो रहा है उसको लेकिन इतना ना उसमें ध्यान है, इतनी ना श्रद्धा है कि वो कहे, कि जान गया कि वास्तव में किसकी कमी थी और उसकी ओर जाऊँगा ।

तो वो एक नकली तरीका निकालता है अपने सूनेपन को भरने का, वो कहता है, “हाँ ठीक, खाली जगह तो है दिल में, पर उसको मैं संसार से भर दूँगा” अब उसे संसार से और-और-और बहुत कुछ…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org