पहले पागल थे, या अब हो गए?

संपूर्ण आध्यात्मिकता का अगर कोई एक ध्येय है, तो वो यह है कि आप इस ज़िन्दगी को भली-भांति भरपूर जिए; इस बात को दस बार दोहराइएं — सम्पूर्ण आध्यात्मिकता का अगर कुछ ध्येय है तो वह यह है कि आप, यह जो आपका जीवन है जिसको आप अपना आम जीवन बोलते है कि मै एक जीवी हूं, मनुष्य हूं, देह में जी रहा हूं, यह मेरा घर है, यह संसार है, यह समाज है, यह रुपया-पैसा है, कपड़े है इत्यादि — तो इस जीवन को आप भली-भांति, पूरे तरीके से आनंदित हो कर जी पाए; यह है सारी आध्यात्मिकता का लक्ष्य, कुछ भी और नहीं।

मरने के बाद क्या होगा, क्या नहीं, इसका अध्यात्म से कोई लेना-देना नहीं है। पैदा होने से पहले क्या था, क्या नहीं, इसका अध्यात्म से कोई लेना-देना नहीं है। बिल्कुल ही नहीं; हां, बातें उसकी होंगी, सदा होंगी। वह बातें इसलिए की जा रही है, ताकि आप इस दुनिया में भली-भांति जी सके। बातों से धोखा मत खा जाईयेगा। गर्भ में आने से पहले आप कहां थे, उसका करोगे क्या? अब वापस तो वह जाओगे नहीं। मरने के बाद कहां को उड़न-छू हो जाओगे, उसका करोगे क्या? तुम तो मर गए न? और मर गए माने — नहीं रहे, खत्म हो गए। अब कुछ उड़ा होगा, राख उड़ी होगी, कि चिड़िया उड़ी होगी, कि धूल, कुछ उड़ा होगा। तुम्हे क्या करना है?

आध्यात्मिक आदमी की पहचान यह नहीं होती कि उसके पास स्वर्ग का पासपोर्ट आ गया, परलोक का वीज़ा या ठप्पा लग कर आ गया, कि अब आप आ सकते है, स्वर्ग में। उसकी पहचान यह होती है कि वह धरती पर बड़ा तृप्त तृप्त घूमता नज़र आता है, समझ रहे हो? वह मिट्टी से कोई बैर नहीं रखता। उसका सुख-दुःख से कोई बैर नहीं होता। उसका किसी शरीरी, ज़मीनी अनुभव से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org