पहले झूठ से मन तो हटे
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झूठ से अनासक्ति होनी चाहिए और सत्य की आहट लगनी चाहिए। झूठ से अनासक्ति होनी चाहिए, वितृष्णा, घिन कह सकते हो। और जब झूठ से घिन लगे, झूठ से हटो तो ऐसी सुविधा दिखनी चाहिए, ऐसा विकल्प दिखना चाहिए की कुछ और संभव है।
इन दोनों में से ज़्यादा महत्वपूर्ण क्या है?
सच की बात नहीं करनी है, झूठ की बात करनी है। झूठ से एक नापसंदगी पहले उठे तो। बुरा लगना चाहिए न!
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आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है।