पहली चीज़ मज़े मारना, बाकी बातें बाद में!

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी! मेरी कुछ लोगों से बात हो रही थी। मेरे मित्र हैं, मेरे साथ काम करते हैं, तो मैंने आपके वीडियोज़ दिखाये उनको और बताया आपके बारे में। उन्होंने देखे भी वीडियोज़ आपके, बहुत अच्छा लगा उनको। कहा कि आप बहुत साफ़, ख़री बातें बोलते हैं।

लेकिन एक चीज़ जो उन्होंने बोली वो ये थी कि आपका एक तरह का बैकग्राउंड (पृष्ठभूमि) रहा है। मतलब आपकी जो एजुकेशन (शिक्षा) है, आप आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) से हैं, आइआइएम (भारतीय प्रबंधन संस्थान) किया और फिर आपने सिविल सर्विसेस (सिविल सेवा) भी पास किया और एक तरह के माहौल में आप थे। तो आपके लिए आसान था, वो बोल्ड डिसिज़न्स (कड़े निर्णय) ले पाना, जिस तरह के निर्णय आपने लिये, जो आप अभी काम कर रहे हैं।

लेकिन अगर एक आम-आदमी की दृष्टि से देखें, तो जिसने अभी जीवन में बहुत कुछ नहीं देखा है, जिसके पास बहुत रुपया-पैसा नहीं है उसको दिखता है कि भाई, मैं और ज़्यादा पैसे कमा लूँ। एक मटीरियलिस्टिक (भौतिकतावादी) मेरा ड्रीम (सपना) है कि मैं इतने पैसे और कमा लूँ और मैं इतनी कम-से-कम एक बेसिक लग्ज़री लाइफ़ (मूलभूत विलासितापूर्ण जीवन) जिऊँ। जिसके बाद मैं निर्णय कर सकता हूँ कि देखो, मुझे जीना है वैसा या नहीं जीना है।

पर अभी तो मैंने कुछ किया ही नहीं, मतलब आप जिस स्थान पर बैठकर बोलते हैं, आपके लिए आसान है बोलना।

तो ये बात कहाँ तक ठीक है? मतलब मैं उसके बाद बहुत ज़्यादा कुछ बोल नहीं पाया उनको। तो मैं चाहता था कि आप ही ख़ुद जवाब दें इसका।

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org