पशु का दूध घातक है, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक — दोनों तलों पर

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कुछ लोग बोलते हैं कि दूध नहीं पीना चाहिए, परंतु पुराने विचारों के लोग बोलते हैं कि दूध पीने से ताक़त आती है। वो तो घर पर भैंस बाँध लेते हैं और दूध का उपभोग करते हैं। कुछ समय पहले आपका एक वीडियो देखा था इसी विषय पर कि कैसे जानवरों के साथ हिंसा हो रही है इन उत्पादों के प्रचलन ले कारण। कृपया प्रकाश डालें कि असल बात है क्या।

आचार्य प्रशांत: आप बताइए।

प्रश्नकर्ता: मेरी कोशिश रहती है कि इनका उपभोग ना करूँ पर विस्तार से बात समझ नहीं आ रही कि असल में ग़लत क्या हो रहा है।

अचार्य जी: इससे संबंधित खबरें, वीडियो लिंक लगातार फाउंडेशन की ओर से आगे जाता ही रहता है, और बहुत-बहुत सारी सामग्री इंटरनेट पर भी उपलब्ध है। देखिए, दो तल हैं जिन पर आप समझ सकती हैं, दूध इत्यादि छोड़ने की दिशा में आगे बढ़ सकती हैं। पहला तल है — मानवीयता का, करुणा का; दूसरा तल है — वैज्ञानिक तथ्यों का। आप दोनों में से किसी भी तल पर देखें तो आपको समझ में आ जाएगा कि यह बात ठीक नहीं है।

आप मानवीयता, करुणा को एक तरफ भी रख दें और सिर्फ विज्ञान की दृष्टि से देखें तब भी आपको दिख जाएगा कि यह दूध इत्यादि आपके लिए घातक ही है। और अगर करुणा की दृष्टि से देखेंगी तब तो फिर किसी वैज्ञानिक तथ्य की भी ज़रूरत नहीं है, दिख ही जाएगा कि यह क्या है। आप उसको आसानी से सिर्फ इसलिए ग्रहण कर पाती हैं — दूध को, दही को — क्योंकि वो कैसे आप तक पहुँचता है, उसकी पूरी प्रक्रिया से आप अनजान हैं। वह सारे काम आपकी आँखों के…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org