पशुओं के प्रति हिंसा

गाय बहुत प्यारा पशु है, भोला-भाला, किसी को नुक्सान नहीं पहुँचाती है गाय। गाय की रक्षा की जानी चाहिए ठीक वैसे, जैसे सब जीवों की रक्षा की जानी चाहिए, लेकिन हम गाय के साथ बड़ा अन्याय करते हैं। अन्याय यहाँ यह है कि हम कहते रहते हैं कि गाय का दूध विशेष है और अब हमने उस अन्याय में एक चरण और जोड़ दिया ये यह कहकर की दूध ही नहीं, मूत्र भी विशेष है।

गाय बेचारी ने बड़ा ख़ामियाज़ा भुगता है इस तथाकथित विशेषता का, जैसे कि ये काफी नहीं था कि आपने गाय के दूध को विशेष बना रखा था, अब आपने गाय के मूत्र को भी विशेष बना डाला।

इस पूरी अज्ञानता का, इस पूरी अंधता का नुकसान कौन भुगतेगा? गाय भुगतेगी।

अगर कोई ऐसा रसायन मौजूद होगा गौमूत्र में तो उस रसायन के पीछे तो सबसे ज़्यादा लालाइत हो करके शोधकर्ता ही भागेंगे न?

दवा बनाने वाली कम्पनी चाहे देशी हों, विदेशी हों, एलोपैथिक हों, आयुर्वेदिक हों, वो सबसे पहले उसका अनुसंधान करके उसके माध्यम से दवा बनाएंगी।

मुनाफ़े के लिए ही सही पर कम-से-कम शोध पर और प्रमाण पर तो यकीन रखो। शोध कर नहीं रहे, प्रयोग कर नहीं रहे, यूँही कुछ भी बोले जा रहे हो। और क्यों बोले जा रहे हो?

क्योंकि एक काल्पनिक नाता बैठा लिया है गाय का और धर्म का। गाय का और धर्म का क्या नाता है भई?

धर्म का ताल्लुक सीधे — सीधे अहंकार के अनुसंधान से है। पता करो कि भीतर कौन बैठा है जो हँसता है, गाता है, खेलता है, रोता है, उठता है, गिरता है, जगता है, सोता है। उसको पता करने का क्या संबंध

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org