पशुओं के प्रति हिंसा रोकने में मदद करो

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरे हाथों, मतलब काम करते समय मुझसे ग़लती से एक घोड़े की हत्या हो गयी थी। उस बात को आज ४ साल हो चुके हैं पर आज भी रात को बेचैनी में जाग उठता हूँ उसके ख़्याल से। मैं उसे बहुत प्यार करता था, मेरे बच्चे जैसा था वो। मैं बिलकुल शाकाहारी हूँ, हिंसा भी कभी करता नहीं किसी से। पर उसकी पीड़ा का कारण मैं था। ऐसा क्यों हुआ?

आचार्य प्रशांत: प्राणी के प्रति प्रेम भली बात है, और उससे भी ऊंची बात है, प्राणी मात्र के प्रति प्रेम। तुम्हें एक पशु से प्रेम था। तुम्हें लगता है तुम्हरी लापरवाही से उसे कष्ट मिला, उसकी मौत हुई। ये बात तुम्हें व्यथित करती है, बेचैन रखती है। पर ये भी तो देखो कि दुनिया में कितने पशु हैं जिनको लगातार वेदना दी जा रही है। जिनकी लगातार हत्या की जा रही है। तुम गिनती नहीं कर पाओगे रोज़ कितने जानवर इंसान मार रहा है। तुम्हारी कल्पना से परे की बात है। जितने जानवर आदमी रोज़ मार रहा है वो करोड़ों में नहीं, अरबों में हैं। आदमी रोज़ अरबों जानवर मार रहा है। मैं सालाना या मासिक आंकड़े नहीं बोल रहा हूँ, मैं रोज़ की बात कर रहा हूँ। और मैं जब भी जानवर कह रहा हूँ तो उसमें मैंनें मछलियों की गिनती नहीं करी है क्योंकि मछलियों की तो संख्या गिनी भी नहीं जाती। उनका तो वजन गिना जाता है। किलो के भाव। जानवरों की संख्या गिनी जाती है। आदमी रोज़ अरबों जानवर मार रहा है।

शायद जिस जीव की मृत्यु तुम्हारे हाथों हुई, असावधानी-वश हुई। उसको तुम सम्यक और प्रेमपूर्ण श्रद्धांजलि यही दे सकते हो कि ये जो महापाप चल रहा है, किसी तरह इसको रोकने में, कम करने में योगदान…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org