परिवार से मोह || महाभारत पर

प्रश्नकर्ता: नमन, आचार्य जी। मुझे समस्या आती है वैराग्य को अपने पारिवारिक जीवन के साथ जीने में। जैसे भीष्म और गुरु द्रोणाचार्य ने ज्ञानी होकर भी कुछ ग़लत निर्णय लिये, वैसे ही मैं भी स्वार्थी और असमर्थ हो जाता हूँ परिवार के सामने। परिवार के सामने सारा ज्ञान विलुप्त हो जाता है और अहंकार प्रबल। कृपया निवारण करें।

आचार्य प्रशांत: किस तल पर जवाब दूँ आपको एक?

क्या है परिवार? परिवार से मोह है आपको, ऐसा लगता है परिवार माने आस-पास के कुछ लोग, है न? माँ-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी, भाई-बंधु, पत्नी, पति, बच्चे, नाती-पोते और तमाम रिश्तेदार — इसी का नाम परिवार है। मैंने तो बहुत बड़ा बना दिया, आमतौर पर जब आप कहते हैं ‘परिवार’, तो आपका आशय होता है सिर्फ़ अपने छोटे-से घोंसले से — पत्नी होगी, बच्चे होंगे, हद-से-हद एक-दो लोग और होंगे। ये जितने भी लोग हैं, जिनके सामने आप कह रहे हैं कि आप असहाय हो जाते हैं, जिनको आपने नाम दिया है ‘परिवारियों’ का, इन सब में साझी बात क्या है? ये आपसे कैसे जुड़े हुए हैं?

प्र: देह का संबंध।

आचार्य: देह का संबंध है। तो जब आप कहते हो कि आप परिवार को महत्व देते हो, तो वास्तव में आप किसको महत्व देते हो?

प्र: देह को।

आचार्य: दादा-दादी से क्या संबंध है मूलतः? ये बाद में कहना कि, “हमारी कोमल भावनाएँ जुड़ी हैं उनके साथ।” कोमल भावनाएँ बाद में जुड़ी हैं, प्राथमिक संबंध क्या था?

प्र: देह का।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org