परिवार में प्रेम क्यों नहीं?
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प्रश्नकर्ता: हाल ही में परिवार में किसी अतिप्रिय व्यक्ति का देहाँत हुआ। मन को आघात लगा जब परिवार से संबंधित कई तथ्य उजागर हुए। मैने जाना कि दशकों साथ रहने के बाद भी एक परिवार के लोगों में आपसी नज़दीकी नहीं होती। क्या परिवार की संस्था ही अप्रेम पर आधारित है या बस हम ही लोग प्रेम से वंचित हैं?
आचार्य प्रशांत: देखिए, परिवार तो रहेंगे। जबतक इंसान देहभाव से काम कर रहा है, तब तक उसे दूसरे को भी देह की तरह देखना पड़ेगा और दूसरे को देह की तरह देखा नहीं कि दूसरे के साथ अलग रहने का, दूसरे के साथ एक तरह के एकांतवास का उसको बड़ा लालच रहेगा।
आपने देखा है, एक भीड़ में बहुत सारे लोग हों। मान लीजिए जवान लोग हैं, लड़के-लड़कियाँ उनमें किसी लड़के और किसी लड़की में बात बन जाए तो वो पहला काम क्या करेंगे?
वो भीड़ से छिटकेंगे। वो अपने लिए कहीं कोना खोजेंगे, एकांत खोजेंगे। वो कहेंगे, “ठीक है। ये जगह ठीक है। पेड़ के नीचे यहाँ अपना आराम से बैठके एकांत में बात कर सकते हैं, बस हम और तुम।” ये परिवार बन गया। आप देह थे, आपने जो विपरीतलिंगी है उसको देह की तरह देखा और आप बाकी दुनिया से कट गए, आपने अपना एक अलग कोना खोज लिया। इसी अलग कोने को घर कहते हैं और परिवार और घर एक साथ चलते हैं। घर क्या? जो एक परिवार में रहता है। आम तौर पे, साधारणतया।
अब अचानक से तो पूरी मनुष्य जाति का उद्बोधन हो नहीं जाएगा। ऐसा तो हो नहीं जाएगा कि हम कल सुबह उठें और अचानक पाएँ कि जितने लोग हैं वो सब एकदम मुक्त घूम रहे हैं, समधिष्ट घूम रहे हैं। आदमी आदमी रहेगा, औरत औरत रहेगी। सब में देहभाव है, प्रकृति की बात है, परमात्मा की लीला है। तो लोग ऐसे रहेंगे। लोग ऐसे रहेंगे तो परिवार भी रहेंगे। आदमी और औरत का जो रिश्ता है वो परिवार की नीव है।
ठीक है?
और जहाँ आदमी-औरत का रिश्ता है, तहाँ वो कहेंगे कि “हमें देखो, अपने लिए एक अलग कमरा चाहिए। हमें चार दीवारें चाहिए जो हमें पूरी दुनिया से अलग कर दें। पूरी दुनिया से अलग होंगे तभी तो हम दोनों आपस में एक अनुभव कर पाएँगे।”
ये सब शरीर की मूर्खताएँ होती हैं पुरानी। इनपे हम बहुत बार बात कर चुके हैं कि जो झूठे रिश्ते होते हैं, उनकी पहचान ही यही होती है कि उनमें आप एक-दूसरे के तभी हो सकते हैं जब आप बाकी पूरी दुनिया से कट गए हों। और इन चीज़ों को हम बड़ी मिठास के साथ सम्मान देते हैं।
कोई आपसे कहे कि “नहीं, पूरी दुनिया को भूल जाओ, मुझे याद रखो।” या “मैं पूरी दुनिया को भूल गया हूँ, बस तुम्हें याद रखता हूँ।” तो इन बातों को हम बड़े सम्मान से, बड़े प्रेम से सुनते हैं जबकि ये बड़ी ज़हरीली बातें हैं। इसका मतलब ही यही है कि घरौंदा बनने को…