परम लक्ष्य सबसे पहले
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जहाँ कहीं भी तुम परम लक्ष्य बनाओगे, उससे चाहते तो तुम एक प्रकार की खुशी ही हो। यही तो चाहते हो और क्या चाहते हो? परम लक्ष्य नहीं होता है। परम ये होता है कि उसी खुशी में रह कर तुमने अपने बाकी सारे काम करे। छोटे- बड़े, लम्बे-चौड़े जो भी है। आखिर में क्या चाहिए? खुशी। मैं कह रहा हूँ तसल्ली, खुशी, आनंद, जो भी बोल लो। मैं कह रहा हूँ कि उसमें रहते हुए ही बाकी सारे काम करो। परम को पहले पाओ और शॉर्ट टर्म को बाद में पाओ। सुनने में अजीब लगेगा। ज़िन्दगी में आम तौर पर ये होता है कि जो पास का होता है वो पहले मिलता है, जो दूर का होता है वो बाद में मिलता है। मैं तुमसे कह रहा हूँ कि जो दूर का है उसे पहले पा लो। फिर जो पास वाले हैं इनको पाते रहना। क्योंकि जो दूर का है वो अभी है। हमने कहा परम तो तुम्हरी खुशी ही है, तसल्ली ही है। जो भी करो, तसल्ली में करो। जो भी करो, खुशी में करो। तो परम तो मिल गया। अब छोटे-मोटे लक्ष्य पाते रहेंगे।
श्रोता १: लेकिन जो इंसान संतुष्ट हो जाता है, जिसकी तसल्ली हो जाती है, उसकी चाहत या इच्छा खत्म हो जाती है।
आचार्य प्रशांत: उसकी इच्छा खत्म नहीं होती। उसकी बदहवासी खत्म हो जाती है। जिसको खुशी मिली हुई है, जो तसल्ली में है, ऐसा तो नहीं वो कुछ भी करेगा नहीं। पर वो जो कुछ भी करेगा, वो तसल्ली में करेगा। जिसको खुशी नहीं मिली हुई है, वो जो भी कुछ करेगा वो कैसी स्थिति में करेगा?
सभी श्रोता: बदहवासी में।
आचार्य प्रशांत: अगर मैं खुश नहीं हूँ तो मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ, वो अपनी कैसी हालत में कर रहा हूँ? दुख में करूँगा न। खुशी नहीं है, तो दुखी ही है। और दुख में तुम जो भी कुछ करोगे, वो अच्छा तो हो नहीं सकता। मैं तुमसे कह रहा हूँ कि ऐसा नहीं होता कि पहले शॉर्ट टर्म गोल, फिर लॉन्ग टर्म गोल और फिर ऐब्सलूट गोल। मैं तुमसे कह रहा कि ऐब्सलूट, परम, वो सबसे पहले आता है। फिर उसके बाद तुम करते रहना कि शॉर्ट टर्म, लॉन्ग टर्म, तुम्हें जो करना है वो करते रहना। उस परम को पहले पाओ क्योंकि वो परम लगने में दूर का है। वास्तव में है वो बहुत पास है। तुम थोड़ा सा ज़िन्दगी को समझ जाओ तो तुम्हें वो परम बात समझ आ जानी है। और जो आदमी तसल्ली में काम करता है, उसके सारे काम बढ़िया होते हैं। जो आदमी बदहवासी में काम करता है वो कुछ भी करेगा, उल्टा-पुल्टा करेगा भले ही कितना बढ़िया काम कर रहा हो। भले ही दुनिया को ये लग रहा हो कि पता नहीं इसने क्या कर दिया। पर वो वास्तव में उल्टे-पुल्टे काम कर रहा होगा।
संतुष्टि, खुशी, जो भी कहना चाहते हो। मैं कह रहा हूँ कि उसको आखिर में मत पाओ। उसको पहले पाओ। सबसे पहले उसको पालो। उसके बाद बाकी सारे काम कर लेना। कुछ कर कर के तुम्हें संतुष्टि नहीं मिलेगी। संतुष्टि पाई नहीं जाती। संतुष्ट आदमी सब कुछ…