परमात्मा से क्या माँगें?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपने एक प्रवचन में कहा है कि जो मांगोगे वो मिलेगा। अगर नहीं मिलता तो ये समझना कि वो तुम्हारे लिए नहीं है। तो हमें कैसे पता चलेगा कि हमे क्या मांगना चाहिए और क्या नहीं मांगना चाहिए, ताकि हमें वो मिले जो हम मांगे?

आचार्य प्रशांत: तुम्हारे लिये तो यही सही है कि तुम ये मांगने का धन्धा ही बंद कर दो। जन्म तुम्हारा तुम्हारे मांगने से हुआ था क्या? ये जिसको तुम कहते हो “मैं”, ये “मैं” अस्तित्व में तुम्हारी मांग के फलस्वरूप आया। जब “मैं” की हस्ती ही बिना मांगे है तो आगे ये “मैं” इतना मांगता क्यों है।

क्या फर्क पड़ता है कि क्या मांगोगे? तुमने प्रश्न करा है कि क्या मांगूं? जो भी मांगोगे, ये धारणा कर के मांगोगे कि तुममें कोई कमी है जिसको भरने के लिए मांग आवश्यक है। कोई मांग कर सकता है कि मेरी दाँई जेब भर दो, कोई मांग कर सकता है कि मेरी बाँई जेब भर दो, लेकिन दोनों ही किस मान्यता से ग्रस्त हैं कि जेब खाली है।

तो क्या फर्क पड़ता है कि तुमने क्या मांग करी, हर मांग के पीछे यही मान्यता बैठी है कि मैं भिखारी हूँ। कोई भिखारी फूटे कटोरे में मांगता है, कोई सोने के कटोरे में भी मांग सकता है, कोई दाएँ हाथ से मांगता है, कोई बाएँ हाथ से भी मांग सकता है। क्या फर्क पड़ता है कि कटोरा किस धातु का है और किस हाथ से मांग रहे हो।

कोई हिंदी में याचना कर सकता है, कोई संस्कृत में कर सकता है, कोई अंग्रेज़ी में, क्या फर्क पड़ता है कि किस भाषा में भीख मांग रहे हो, मांग तो रहे ही हो ना? और जो मांगे सो भिखारी। परमात्मा भिखारी नहीं पैदा करता। और तुम परमात्मा से ही मांग रहे हो और सिद्ध कर रहे हो कि परमात्मा को कि तुमने भिखारी ही पैदा किये हैं।

परमात्मा भिखारी पैदा करता नहीं। तुम पूरी धरती को देख लो, कौन तुम्हे यहाँ मांगता हुआ नज़र आता है। ये पेड़ कभी कुछ मांगता नहीं, ये हवाएँ कुछ मांगती नहीं, ये घास कुछ मांगती नहीं, नदी कुछ मांगती नहीं, छोटे से छोटे जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े कुछ मांगते नहीं। उन्हें जो चहिये वो उपलब्ध है।

आदमी अकेला है जो मांगता है। जैसे कि परमात्मा ने सब कुछ बना दिया और फिर भिखारी बनाना शेष रह गया था तो उसने इंसान बना दिया। पूरी पृथ्वी पर सबकुछ बनाने के बाद परमात्मा को याद आया कि सब कुछ तो बना दिया भिखारी बनाया नहीं, तो फिर उसने इंसान रचा।

मांगने से पहले पांच बार अपने आप से सख्ती से पूछा करो, “चाहिए भी है क्या? नहीं मिलेगा तो क्या बिगड़ जाएगा?” जितना तुम पाते जाओगे कि कुछ नहीं बिगड़ता तुम्हारा न पाने से, उतना ज्यादा तुम स्वयं में, आत्मा में स्थापित होते जाओगे।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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