परधर्म भयावह है || श्रीमद्भगवद्गीता पर
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श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात् |
स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह: || ३, ३५ ||
दूसरों के कर्त्तव्य का भली-भाँति अनुसरण करने की अपेक्षा स्वधर्म को दोषपूर्ण ढंग से करना भी अधिक कल्याणकारी है। दूसरे के कर्तव्य का अनुसरण करने से भय उत्पन्न होता है और स्वधर्म में मरना भी श्रेयस्कर होता है।
— श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३, श्लोक ३५
प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। इस श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि अपना कर्तव्य अर्थात् स्वधर्म का पालन करना दूसरे के धर्म के अनुसरण करने से बेहतर है। ऐसा श्रीकृष्ण ने क्यों कहा है? कृपया मार्गदर्शन करें।
आचार्य प्रशांत: श्रीकृष्ण ने कहा है कि स्वधर्म बेहतर है क्योंकि स्वधर्म बेहतर है, और कोई वजह नहीं है। क्या तुम्हें ऐसा लग रहा है स्वधर्म श्रेष्ठ नहीं है परधर्म से? ऐसा लग रहा हो तो मुझसे पूछो। अन्यथा तुम मुझसे पूछोगे कि कृष्ण स्वधर्म को श्रेष्ठ क्यों बता रहे हैं, तो मैं कहूँगा इसलिए क्योंकि स्वधर्म श्रेष्ठ है, और क्या बात?
स्वधर्म का क्या मतलब है?
स्वधर्म का मतलब है अपनी स्थिति के प्रति ईमानदारी।
स्वधर्म का मतलब है कि अगर तुम्हारे दाएँ हाथ में दर्द है तो दवा दाएँ हाथ में लगाओ। और परधर्म का मतलब है कि तुम्हारे घर में सब बाएँ हाथ में दवा मलते हैं तो तुम भी बाएँ हाथ पर ही मल रहे हो, भले ही दर्द तुम्हारे दाएँ हाथ में है, ये है परधर्म।
परधर्म का मतलब है वो करना जो दूसरे कर रहे हैं।
और दूसरे जो कर रहे हैं, वो क्यों कर रहे हैं? क्योंकि उन्होंने भी किन्हीं दूसरों को करते देखा है। वो पागलपन है न।
स्वधर्म का मतलब है, मैं फ़िर दोहरा रहा हूँ, अपनी स्थिति के प्रति ईमानदारी। पता हो कि तुम्हारी हालत क्या है, और इसलिए फ़िर पता हो कि इस हालत में तुम्हें करना क्या है। जो तुम्हारे लिए करना उचित है, उसी का नाम धर्म है।
तो बहुत सीधी-साधी बात कह रहे हैं कृष्ण। अपनी हालत को देखो, क्या तुम दूसरों का अनुसरण, दूसरों की नक़ल कर रहे हो। दूसरे को लगी है भूख, वो खा रहा है। तुम्हें लगी है प्यास, दूसरे की नक़ल करके अगर खाने लग गए तो प्यास और बढ़ेगी। तो कहते हैं, “परधर्मो भयावह”, भयानक अंजाम होगा दूसरे के धर्म का अनुसरण करने का। मत देखो कि दूसरे क्या कर रहे हैं, तुम देखो तुम्हारे चित्त में छेद कहाँ पर है। तुम अपने घाव का उपचार करो। दुनिया जो कर रही, वही पीछे-पीछे मत करने लग जाओ।
गौर से समझो कि तुम्हें जो चाहिए, वो क्या है और उसकी प्राप्ति में पूरी जान…