पत्नी पर शक और निगरानी

सबसे पहले अपना ज्ञान करना होता है। संदेह किस पर हो रहा है उसकी बात नहीं है, संदेह करने वाला कौन है उसकी बात है।

जब तुम खुद को नहीं जानते, तुम्हें शायद यही नहीं पता कि तुमने शादी की क्यों है, तो तुम अपनी पत्नी को लेकर के आश्वस्त कैसे रह सकते हो?

इसी तरह से ज़्यादातर पत्नियाँ भी अपने पतियों को लेकर आश्वस्त नहीं रहती क्योंकि उनको पता ही नहीं है कि उनकी ज़िंदगी में यह व्यक्ति कर क्या रहा है। यूँ ही चलते-फिरते, नशे में एक दिन अचानक तुम पाते हो कि कोई तुम्हारी दाईं तरफ या बाईं तरफ चिपक गया है, और तुम्हें बिलकुल नहीं पता वह क्यों चिपक गया। अधिक-से-अधिक तुम्हें यह पता है कि सबके चिपकते हैं इसलिए मेरे भी चिपक गया। अब जब तुम कुछ जानते नहीं, कुछ समझते नहीं, तो तुम कैसे आश्वस्त रहोगे इस चिपकी हुई चीज़ के प्रति?

उसी तरीके से तुम चले जा रहे थे, चले जा रहे थे, तीन साल के हुए तो एक स्कूल तुम्हारे सर पर चिपक गया, एक स्कूल का बस्ता एक तुम्हारी पीठ पर चिपक गया। स्कूल की यूनिफॉर्म तुम्हारे शरीर पर चिपक गई, तुम्हें समझ में थोड़े ही आया कि तुम्हारे साथ यह क्यों किया गया।

किसी स्कूली बच्चे से पूछो, “स्कूल क्यों जाता है?” वह तुम्हारा मुँह ताकेगा। उसको वाकई नहीं पता वह स्कूल क्यों जाता है। और मैं तीन-चार साल के बच्चे की बात नहीं कर रहा। तुम दस-ग्यारह साल, पंद्रह साल वाले से भी पूछो जो अब हाई स्कूल में आ गया हो कि स्कूल हमें क्यों जाना होता है, तो वो तुम्हें कोई सुंदर, गहरा और असली जवाब नहीं दे पाएँगे।

कोई बोलेगा सब जाते हैं, कोई बोलेगा एजुकेशन इज इंपोर्टेंट (शिक्षा आवश्यक है), कोई बोलेगा कैरियर के लिए, कोई बोलेगा ऐसे ही नॉलेज (ज्ञान) होना चाहिए। पर शिक्षा क्या है और हम शिक्षा क्यों पा रहे हैं, हमें नहीं पता। जबकि हम अपने जीवन के कम-से-कम बीस अमूल्य वर्ष शिक्षा पाने में ही लगा देते हैं, लगा देते हैं न?

वैसे ही लोग ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हों, उनसे भी पूछो जो कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं, उन्हें भी ना पता हो। पीएचडी स्कॉलर को ना पता हो कि क्यों लगे हुए हैं पीएचडी करने में। डॉक्टर कहलाएँगे पगले।

करे जा रहे हैं, पता नहीं है कि क्यों कर रहे हैं। बस एक चीज़ चिपक गई, कुछ दिनों में क्या चिपक जाएगा उनके नाम के साथ? नाम था झल्ला सिंह, अब वो कहलाएँगे डॉक्टर झल्ला सिंह। अब डॉक्टर चिपक गया है। उन्हें इस डॉक्टर पर भी शक़ रहेगा कि, “यह मेरे साथ क्यों चिपका हुआ है और यह आधे चांद जैसा क्यों दिखता है ‘डी’ पूरा क्यों नहीं है? शक़ हो रहा है मुझे इस पर। बाकी आधा कहाँ छुपा कर आया है तू?”

जहाँ ज्ञान नहीं, वहाँ संदेह है।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant