पति-पत्नी को साथ रहना ही है, तो ऐसे रहें
प्रेम तो मूलतः आध्यात्मिक होता है। प्रेम करने की योग्यता तो सिर्फ उसकी है जो मन को समझ गया हो,जो मन की बेचैनी को जान गया हो। मन की बेचैनी का चैन के प्रति खिंचाव ही प्रेम है। इसके अलावा प्रेम की कोई परिभाषा नहीं है। “आचार्य जी, देखिए, आप गलती कर गए न, आपने प्रेम की परिभाषा दे दी। अरे! हमसे पूछिए न, हम आठवीं क्लास के लौंडे हैं लेकिन हम आपको बताए देते हैं कि इश्क वो है जिसे लफ्ज़ों में बयान नहीं किया जा सकता और यह हमें…