पति-पत्नी को साथ रहना ही है, तो ऐसे रहें

प्रश्नकर्ता: जब मैं आपको नहीं सुनता था तो ऐसा सोचता था कि जो माता-पिता शादी करवाते हैं वह कुदरती घटना है। क्योंकि हम जन्मे वह कुदरती और जो समाज में शादी हुई वह भी कुदरती और जो लव मैरिज करते हैं वह आर्टिफिशियल है लेकिन आपको सुनते-सुनते ऐसा लगा की लव मैरिज कुदरती है और जो समाज में शादी होती है वह आर्टिफिशियल लगती है। मैं जब आपको नहीं सुनता था तभी मेरी शादी और सब हो गया था। यह मेरी धर्मपत्नी हैं।

लेकिन शादी के बाद आप जैसा प्रेम परिभाषित करते हैं हम वैसा प्रेम नहीं कर रहे हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हम अलग होना चाहते हैं तो आगे हम साथ में भी रहना चाहते हैं और प्रेम जैसा आपने परिभाषित किया था वैसा करना चाहते हैं। हम दोनों घर में होम थिएटर लगाकर आपको सुनते हैं तो आगे के लिए हमारे लिए आप क्या सजेशन देंगे?

आचार्य प्रशांत: इन को आगे करके तो सवाल पूछ रहे हो।

(सभी श्रोता हँसते हुए)

दो लोग हैं एक दूसरे के लिए सहृदयता रखते हैं ज़ाहिर है कि यह अच्छी बात है। लेकिन जब किसी का भला चाहते हो तो यह ज़िम्मेदारी आ जाती है न? कि पता भी हो भलाई किस चिड़िया का नाम है।? नहीं तो चाहने भर से थोड़े ही होगा।

बाहर गाड़ी खड़ी है मेरी कुछ आवाज़ कर रही है पता नहीं वापस मैं शहर तक ठीक-ठाक पहुँचूँगा कि नहीं?

आप में से कितने लोग चाहते हैं मैं ठीक ठाक पहुँच जाऊँ वापस?

सब चाहते हैं।

चाहने से क्या होगा?

उस इंजन का, उसकी प्रक्रिया और प्रणाली का, कुछ पता भी तो होना चाहिए न। या जाओगे और उसको फुसफुसाओगे कि देखो-देखो यह हमारे बड़े प्यारे मित्र हैं, इन्हें सकुशल पहुँचा देना, तो वो पहुँचा देगी? चाहने से कुछ हो जाएगा क्या?

तो यह बात सब चाहने वालों को समझना चाहिए न। चाहने भर से कुछ नहीं हो जाता। मन की जटिलताओं का, मन के खेलों का ज्ञान भी होना चाहिए, तभी दूसरों का भला कर पाओगे। नहीं तो बड़े अफसोस की बात हो जाती है कि लोग चाहते तो एक दूसरे का हित हैं, लेकिन अनजाने में अहित कर डालते हैं। अपना ही हित नहीं कर पाते लोग, दूसरों का हित कैसे करेंगे?

शुरुआत करी थी सवाल कि यह कहकर कि कुदरती क्या है? लव मैरिज, अरेंज मैरिज यह सब।

देखो! यह जो आयोजित विवाह होता है, यह आमतौर पर घर वालों की माया से निकलता है और जिसको प्रेम विवाह कहते हो वह स्त्री और पुरुष की आपसी माया से निकलता है। अब तुम्हें कौन सी माया चाहिए तुम चुन लो। एक विवाह वह होगा जिसमें घरवाले, बाकी सब रिश्तेदार मिल कर के अपने हिसाब से तय करते हैं तुम्हें किस के साथ होना चाहिए। वहाँ उनका…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant