पढ़ाई के किसी विषय में रुचि न हो तो?
इंटरेस्ट या रुचि छोटी चीज़ होती है, सत्यता बड़ी चीज़ होती है।
अहंकार कहता है, “रुचि को प्रधानता दो।”
अध्यात्म कहता है, “धर्म प्रधान है।”
अध्यात्म का अर्थ ही है — रुचि की परवाह ही न करना, और उस तरफ चलना जिस तरफ धर्म है, जिधर सत्य है।
रुचि की तरफ चलना माने — वृत्तियों के चलाए चलना।
रुचि बड़ा हल्का शब्द है।
और ये बड़े खेद की बात है कि हमने आज के समय में रुचि को, या इंटरेस्ट को बड़ा आदरणीय शब्द बना लिया है। हम रुचि की बात ऐसे करते हैं जैसे रुचि कोई ऊँची चीज़ हो, सत्य की समकक्षी हो।
जीवन जीने का उसूल ये है कि — “रुचि चाहे हो चाहे न हो, वो करेंगे जो ज़रूरी, उचित है, आवश्यक है, सत्य है, आध्यात्मिक है।
लेकिन हवा कुछ ऐसी चल रही है कि लोग कहते हैं, “आई एम नॉट इंटरेस्टेड (मेरी इसमें रुचि नहीं है)।” सो व्हॉट(तो क्या)? हाऊ इस यॉर इंटरेस्ट सो सेक्रेड (तुम्हारी रुचि में ऐसा क्या पवित्र है, पूजनीय है)?
लेकिन बात यही है कि सेक्रेडनेस, पवित्रता या पावनता का कोई मूल्य ही नहीं रहा है। वो सिद्धांत के तौर पर भी बच नहीं रही है। तो जब कुछ नहीं है जो अहम से आगे का है, कुछ नहीं है जो आपकी रुचि से कहीं ज़्यादा आवश्यक है, तब ‘रुचि’ ही रानी बन बैठती है।
छोटे-छोटे बच्चों को सिखाया जा रहा है — “फाइंड आउट व्हॉट यू आर इंटरेस्टेड इन (पहचानो तुम्हारी रुचि किसमें है)।”