पंख हैं पर उड़ान नहीं
प्रश्नकर्ता: हम मुक्त होते हुये भी मुक्त क्यों नहीं हैं?
आचार्य प्रशांत: कुछ सवाल महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन मैं कहता हूँ कि ये बहुत महत्वपूर्ण सवाल है। मुझे ये भी नहीं पता है कि ये जो सवाल पूछा गया है क्या उसे ये पता भी है कि उसने पूछा क्या है! लेकिन जो पूछा गया है वो बात बड़े काम की है। हो सकता है कि जानते-बुझते ये सवाल पूछा गया हो या हो सकता है कि अनजाने में पूछ लिया हो, लेकिन जैसे भी पूछा है, सवाल बड़े काम का पूछा है।
कुछ तथ्यों पर गौर करेंगे। फिर मैं तुमसे पूछूँगा कि इन तथ्यों से क्या बात पता चलती है।
पहला तथ्य: दुनिया मैं कोई ऐसा नहीं है जिसकी ये बहुत बड़ी आकांक्षा हो कि सब उससे नफरत करें। दुनिया में ना ऐसा कोई हुआ है और ना ऐसा कोई है जो ये चाहता हो कि उससे नफरत की जाये। वो जहाँ जाए उसे जूते पड़ें, लोग उसके ऊपर थूकें, छोटे-छोटे बच्चे कहें कि ‘छी-छी, गन्दा’। हम सभी प्रेम पाना चाहते हैं।
इससे यह पता चलता है: प्रेम हमारा मूल स्वभाव है।
दूसरा तथ्य: दुनिया में कोई ऐसा नहीं है, ना हुआ, ना है, जो ग़ुलाम रहना पसंद करता हो। कोई कहता हो कि मुझे क़ैद में रखो, मुझे बंधन में रखो! मजबूरी है तो बात अलग है पर पसंद किसी को नहीं है।
इससे यह पता चलता है: हम सभी मुक्ति पाना चाहते हैं। चाहने में तो ऐसा लगता है कि अभी चाह कर रहा हूँ, आगे हो सकता है ना भी करूँ। जैसे और कोई विकल्प हो! मैं तुमसे कह रहा हूँ, चूँकि, हम सभी गुलामी नापसंद करते हैं, इससे यह पता चलता है कि मुक्त रहना हमारा मूल स्वभाव है।मैं एक…