न हम चैतन्य, न हम जड़, बस मध्य के हैं एक भँवर
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना।।
मैं वेदों में सामवेद हूँ, देवों में इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात् जीवनशक्ति हूँ।
—श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १०, श्लोक २२
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। गीता के सातवें अध्याय में प्रकृति के बारे में समझाने के लिए धन्यवाद। अपरा प्रकृति के आठ पदार्थों के बारे में जानकर अपने भीतर कुछ बदलाव आया। कृपया अब इस विषय को और गहराई से बताइए।