न समर्थन, न विरोध

साधु ऐसा चाहिए, दुखै दुखावे नाहि।
पान फूल छेड़े नहीं, बसै बगीचा माहि।।
~ गुरु कबीर

आचार्य प्रशांत: कल रात में जो लोग साथ थे, उनसे एक बात कही थी कि ‘त्याग कहता है, ‘न सुख, न दुःख’ और बोध कहता है, ‘जब सुख, तब सुख और जब दुःख, तब दुःख’।

एक बार एक ज़ेन साधक से किसी ने पूछा कि जब सर्दी लगे, जब गर्मी लगे, तो क्या करें? सर्दी-गर्मी से मुक्ति का क्या उपाय है? तो ज़ेन साधक ने उत्तर दिया, “जब गर्मी लगे, तो गर्म हो जाओ, और जब सर्दी लगे, तो सर्द हो जाओ।” यही उपाय है- गर्मी में गर्म, और सर्दी में सर्द। बदलने की कोशिश मत करो, छेड़ने की कोशिश मत करो।

जगत प्रकृति के नियमों के आधीन है, और सत्य की छाया मात्र है, वह प्राथमिक नहीं है। इससे छेड़खानी का कोई औचित्य नहीं है, ये मूल है ही नहीं। किसी पेड़ की शाखों, पत्तियों को कुतरने से क्या होगा? मूल है अगर, तो हजार पत्तियाँ, हजार शाखाएँ बार-बार निकलती ही रहेंगी। इनसे लड़ने से क्या होगा? ये महत्वपूर्ण हैं ही नहीं।

समझदार व्यक्ति संसार को इतना भी महत्व नहीं देता कि वो उसका परित्याग करे। उसे ये भी नहीं करना है कि सुख आ रहा है, तो सुख का त्याग कर दे, या दुःख आ रहा है तो दुःख को भोगने से बचे, उसे ये नहीं करना। वो कहता है, “इनको महत्व ही क्यों देना? ये कह कर के कि मैं फलानी वस्तु का त्याग करना चाहता हूँ, मैं उस वस्तु को ज़रुरत से ज़्यादा महत्वपूर्ण बना देता हूँ। तेरा इतना भी महत्व नहीं है कि मैं तुझे त्यागूँ।” बात समझिएगा।

जब त्यागी कहता है कि, “मुझे कुछ त्यागना है”, तब उसके मन में दिन-रात वही वस्तु चलती है जिसे उसे त्यागना है। आप तय कर लो कि आपको अपना अपना वज़न त्यागना है, और यहाँ पर कई लोगों ने ऐसा तय किया होगा कई मौकों पर, अपनी ज़िंदगी में। आप ये तय कर लो कि आपको दस किलो वज़न कम करना है, अगले छः महीने के भीतर, तो छः महीने तक आपके दिमाग में सिर्फ़ वज़न ही वज़न घूमेगा। अब ये बड़ी मज़ेदार बात है। जो त्यागना है, वही दिमाग में घूम रहा है क्योंकि अब वह महत्वपूर्ण हो गया, अब वह महत्वपूर्ण हो गया। ये सहजता नहीं है।

जिन भी धर्मों ने ये सिखाया है कि ये न करो, वो न करो, ये त्यागो, ऐसा आचरण रखो, उन्होंने अंततः यही पाया कि त्यागा कुछ जा ही नहीं सकता, हाँ दमन किया जा सकता है, पर दमन से कोई लाभ नहीं होगा।

जब आप कहते हो, कोई वस्तु त्याग दो, तो आप यही बता रहे हो कि ये महत्वपूर्ण है, और इसलिए जिसको आप बता रहे हो, उसके मन में लालच पैदा कर रहे हो। उदहारण के लिए, आप अगर किसी को बताओ कि शराब बुरी चीज़ है, उसको त्याग दो, तो आपको अच्छे से पता होना चाहिए कि आपने उसके मन में शराब के प्रति लालच पैदा कर दिया है।…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org