न तुम, न तुम्हारा श्रम
आचार्य प्रशांत: तुम मुझे बताओ ‘सफलता’ क्या है?
प्रश्नकर्ता: काम करने के बाद जो खुशी मिलती है उसे सफलता बोलते हैं।
आचार्य: अगर मैं काम करने के बाद खुश हूँ तो काम करने के दौरान मैं कैसा हूँ?
नाखुश!
अगर मैं लगातार खुश ही हूँ तो काम करने के बाद अतिरिक्त खुशी तो मिलेगी नहीं?
प्र: ‘हार्ड वर्क इज़ द की टू सक्सेस’ कहा है किसी ने।
आचार्य: जिसने कहा उसने कहा, तुमने क्या समझा? ‘हार्ड वर्क इज़ द की टू सक्सेस’ यह बात तो बाज़ार में फैली ही हुई है। बाज़ार में फैली तो फैली तुमने मानी क्यों?
क्या नाम है तुम्हारा?
प्र: शिवम।
आचार्य: सत्यम शिवम सुंदरम!
सत्य को समझो! बाज़ार में जो चल रहा है उसको जल्दी से मत मान लो!
प्र: हमसे कहा जाता है प्लान बनाओ और अचीव करो!
आचार्य: हमारे लिए तो वही सक्सेस है कि हम कुछ प्लान वगैरह बनाते हैं और अगर उस प्लान को पूरा कर लिया तो हम क्या कहते हैं? सक्सेसफ़ुल हो गए। हमारे लिए तो यही सक्सेस है, है न?
तो ठीक है फ़िर वही समझ लो। जब पता ही है पहले से कि यही सक्सेस है तो फ़िर खत्म करते हैं।
प्र: और उस प्लान को पूरा करने के लिए हार्ड वर्क करना।
आचार्य: अरे! तुम्हें तो सारे राज़ पता है तो मैं क्या बताऊँ? सब इतने होशियार हो और यह सारी होशियारी उधार की है।