न जानने में बड़ा जानना है

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।

~ शांतिपाठ, ईशावास्य उपनिषद्

प्रश्नकर्ता: सर, आप जब अभी शांति मंत्र समझा रहे थे — “पूर्ण मदः पूर्ण मिदं” (पूर्ण से ही पूर्ण आया है) तो एक प्रत्युत्तर तर्क चल रहा था मेरे मन में कि क्या ये तार्किक पूर्ती नहीं कर दी गयी है अंतिम प्रश्न की? क्योंकि हम तो कार्य-कारण में फँसे रहेंगे तो तार्किक रूप से इसे कह दिया गया हो?

आचार्य प्रशांत: असल में तर्क जहाँ भी होता है वहाँ पर कार्य और कारण होते हैं। जब कहा जा रहा है कि पूर्ण से पूर्ण आया है तो उसमें तर्क है ही नहीं, वो वैसी ही बात है जब कोई पूछे कि, ‘ये क्या?’ और कोई जवाब दे कि, ‘ये’। कहा जा रहा है पूर्ण से पूर्ण आया है, ‘अ’ से ‘अ’ आया है, ‘ब’ से ‘ब’ आया है , ‘स’ से ‘स’ आया है तो इसका अर्थ है कि कुछ कहीं से नहीं आया है! पूर्ण से पूर्ण आया है इसको ऐसे समझिये कि कुछ भी कहीं से नहीं आया है, जो है सामने है।

तुम उसकी उत्पत्ति जानने की चेष्टा मत करो क्योंकि उसकी कोई उत्पत्ति हुई ही नहीं है।

उत्पत्ति हमेशा समय में होती है; जब भी ‘उत्पत्ति’ कहते हो हमेशा दूरी बना देते हो। दो अलग-अलग बिंदु स्थापित करते हो, जबकि कोई उत्पत्ति हुई ही नहीं है तो इसमें कोई तर्क नहीं है, तर्क में आप कहते हो कि इसकी वजह से वो हो रहा है — अब ये बात तर्कयुक्त है पर यदि आपसे कोई पूछे कि, ‘ये क्यों हो रहा है?’ और आप बोलो ‘ये बस हो रहा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org