न कृष्ण से न राम से, हम सीखते हैं घर — मीडिया — दुकान से

प्रश्नकर्ता: मैं बहुत, बचपन से ही बहुत डरा हुआ और दुखी था। फिर मैंने उसका उपाय के लिए, जब समझा तब, उपाय के लिए मैंने गीता पढ़ी, रामायण पढ़ा, अष्टावक्र-गीता पढ़ी, कबीर के भजन सुने, ओशो को भी बहुत सुना, आपके भी वीडियो(चलचित्र) बहुत सुने, उसके बाद विपश्यना की, ध्यान-विधियाँ भी कीं, लेकिन आज भी मैं वही डरापन और वही दुख पाता हूँ। तो, और मुझे तब जब सुनता हूँ, तब लगता भी है कि मैं समझ रहा हूँ लेकिन आज भी वही, वही की वही स्थिति है।

आचार्य प्रशांत: जो पढ़ा उसपर अमल कितना करा?

प्रश्नकर्ता: उसको, ध्यान और विपश्यना की विधियाँ कीं।

आचार्य प्रशांत: पहले आपने नाम लिया था अष्टावक्र-गीता का, श्रीमद्भगवद्गीता का, ठीक है? तो वहाँ जो कुछ भी पढ़ा उसपर अमल कितना करा, उसको संकल्प करके जीवन में कितना लाए?

प्रश्नकर्ता: अंदर से सम्यक…। ऐसा भी है अष्टावक्र-गीता में, कि, “बाहर तो कुछ बदलना नहीं है, जो भी है अंदर से होगा तो..।”

आचार्य प्रशांत: ऐसा भी है।

प्रश्नकर्ता: जी।

आचार्य प्रशांत: बिल्कुल चुन-चुन के वही मत बताइए कि जिस पर अमल थोड़ा टेढ़ा लगता हो, जो बहुत सीधा- सीधा है वो बताइए, उसपर कितना अमल करा?

प्रश्नकर्ता: साक्ष्य बनने का कोशिश किया।

आचार्य प्रशांत: ये बहुत दूर की बात है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org