न एकांत न विश्राम, धर्म है अथक काम

विवेकानंद का विशिष्ट योगदान अध्यात्म को जीवन में लाने का था। उन्होंने नहीं कहा कि मैं ज्ञान योग या भक्ति योग को ही और प्रचारित और प्रसारित करूँगा। उनकी विशिष्टता शब्द और जीवन की खाई को पाटने में है। अपूर्व तेज़ से भरे हुए शब्द थे। बात को बिना किसी भी लाग-लपेट के उन्होंने लोगों के सामने रख दिया।

अध्यात्म की जो प्रचलित मान्यता थी कि अध्यात्म एकांत में जा कर कुछ ध्यान लगाने का काम होता है स्वामी विवेकानंद इस बात के खिलाफ जमकर खड़े हुए।

उन्होंने कहा बाहर निकलो और ख़ास तौर युवाओं से कहा कि बाहर निकलो बिना समाज सेवा के कोई अध्यात्म नहीं होगा। सड़क पर उतर कर मेहनत का अनुपम आदर्श उपस्थित करो।
यह समय ध्यान, भजन, कीर्तन भर का नहीं है, भजन भी करते रहना लेकिन इस वक़्त नर की सेवा ही नारायण की सेवा है। समाज से हटकर कोई साधना नहीं होती।

आम लोगों की अपेक्षा स्वामी विवेकानंद कम जीये लेकिन आम लोगों जैसा नहीं जीये।
अध्यात्म की आम धारणा को ही बदल कर रख दिया, उन्होंने कहा अध्यात्म ऊँचे-से-ऊँचा काम है बुढ़ापे का काम नहीं है।

शरीर के साथ सही रिश्ता क्या होता है यह भी उन्होंने समझाया। खेल की, कसरत की उनकी दिनचर्या में बंधी हुई जगह थी।

बोलने वालो, बातें करने वालो की हिंदुस्तान में कभी कमी नहीं रही लेकिन स्वामी विवेकानंद ने उसे कर के दिखाया, जी कर दिखाया। उन्होंने अध्यात्म को जमीन पर उतार दिया, सड़क पर उतार दिया।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org