न ऊर्जा न शक्ति, तुम सद्बुद्धि माँगो
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, शरीर और ब्रह्मांड एक ही ऊर्जा से बने हैं, तो इस शरीर में हम वो परम ऊर्जा कैसे महसूस करें?
आचार्य प्रशांत: थोड़ी-सी ऊर्जा बढ़ जाती है तो थर्मामीटर लेकर दौड़ते हो! और ब्रह्मांड की परम ऊर्जा तुम्हारे शरीर में आ गई तो क्या करोगे? अंटार्कटिका में जाकर लोटोगे? वहाँ की भी सारी बर्फ़ पिघल जाएगी अगर ब्रह्मांड की ऊर्जा तुम्हारे शरीर में आ गई, तो? क्यों ऐसे सवाल पूछ रहे हो? हमारी तो ऊर्जा विक्षिप्त ऊर्जा है, जितनी है उतनी ही नहीं संभाली जा रही, अभी और माँग रहे हो? और ऊर्जा नहीं माँगते, सद्बुद्धि माँगते हैं!
तुम्हारा बच्चा है छोटा और वो कहता है, “मुझे मोपेड दिला दो,” उसे दिला देते हो क्या? तुम्हारा दस साल का बच्चा है, वो मोपेड माँग रहा है, शायद चला भी ले, पर फिर भी दिला देते हो क्या उसको? और मोपेड है आठ हॉर्स पावर की। कितने हॉर्स पावर की? आठ हॉर्स पावर की। और वही बच्चा मुझे सवाल लिखकर भेज रहा है, “मुझे सोलह सौ हॉर्स पावर की सुपरबाइक चाहिए”। कितने हॉर्स पावर की? सोलह सौ हॉर्स पावर की सुपरबाइक चाहिए। मैं उसको दूँ? बोलो तो दे दूँ। वो अभी इस काबिल नहीं कि आठ हॉर्स पावर की मोपेड चला सके और माँग उसकी क्या है? ब्रह्मांड की अनंत ऊर्जा, सोलह सौ हॉर्स पावर मुझे दे दो। और दे दिया तो करेगा क्या? क्या करेगा?
प्रश्नकर्ता: दुर्घटना।
आचार्य प्रशांत: तुम पहले लूना चलाना तो सीख लो। तुम क्या माँग रहे हो? वो तुम्हें मिल गया तो क्या करोगे? अपना ही सर्वनाश करोगे।