न अच्छा न बुरा है संसार, समझ गए तो रास्ता, न समझे तो दीवार

न अच्छा न बुरा है संसार, समझ गए तो रास्ता, न समझे तो दीवार

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपने बताया है कि सब सांसारिक विषय मूल में एक ही हैं, बस रूप अलग-अलग हैं। जैसे ख़राब दूध से बनी सभी मिठाइयाँ ख़राब ही होंगी। चाहे रसगुल्ला खाओ, बर्फी खाओ, रसमलाई खाओ सब गंधाएँगी और पेट ख़राब करेंगी। आचार्य जी, कृपया बताएँ कि इस संसार में ऐसी क्या मूल ख़राबी है जो इसकी कोई भी वस्तु या लोग हमें संतुष्ट नहीं कर पाते और हम बीमार हो जाते हैं?

आचार्य प्रशांत: ये कैसा सवाल है? आपको चाहिए दवाई और आप एक दुकान में घुस जाओ जहाँ मिलती हो मिठाई। वहाँ जितनी मिठाइयाँ हैं सब एक-एक कर के खाओ और अपनी हालत ख़राब करो, फिर मुझसे पूछो कि, “बताईए इस दुकान में ऐसी क्या ख़राबी है जो ये हमें संतुष्ट नहीं कर पाई?”

दुकान में कोई ख़राबी नहीं है। दुकान में क्या ख़राबी है? ख़राबी तुम में है। तुम ग़लत दुकान में क्यों घुसे हो? दुकान अपने आप में थोड़े ही सही या ग़लत है। आत्मज्ञान के अभाव में तुम्हें पता नहीं था कि तुम्हें कौन सी दुकान चाहिए। चूँकि तुम अपनी हालत से ही परिचित नहीं, वाक़िफ नहीं, ज्ञानी नहीं, तो तुम ये भी नहीं जानते हो की तुम्हें चाहिए क्या। जहाँ दवाई चाहिए वहाँ मिठाई खा रहे हो। यही हालत सम्पूर्ण मानवता की है।

हमें नहीं पता कि हमें क्या चाहिए तो फिर हम ग़लत चीज़ों का सेवन करते रहते हैं। बात ख़त्म।

जिन चीज़ों का सेवन कर रहे हो उनको दोष दे रहे हो। अरे, उन चीज़ों ने कहा था क्या हमारे सिर पर चढ़ कर कि, “हमें खाओ, हमें खाओ”? रसगुल्ला उछल कर तुम्हारे मुँह में घुस गया? जलेबी ने…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org