नौकरी बेईमानी की है, पर छोड़ नहीं सकते?

प्रश्न: मुझे समझ में तो खूब आ रहा है कि मेरी कंपनी में बल्कि मेरी इंडस्ट्री में ही धूर्तता है, बेईमानी है, लेकिन मैं क्या करूँ मेरे पास कोई विकल्प नहीं है? तो यदि कोई विकल्प ना हो तो कॉर्पोरेट की नौकरी ही शांति और ईमानदारी से कैसे की जाए?

आचार्य प्रशांत: देखिए अगर शुद्ध जवाब चाहिए तो वो तो ये है कि विकल्प तो हमेशा होता है। विकल्प है आप उस विकल्प को चुनना नहीं चाहते क्योंकि आपको जो वहाँ से धनराशि मिलती है, नाम मिलता है, सुरक्षा मिलती है, उसमें बड़ा सुख है।

चलिए मान लिया कि अभी आप इस हालत में नहीं हैं कि नौकरी छोड़ सके तो फिर भी उस स्थिति में थोड़ी-बहुत भी शांति पाने का एक ही तरीका होता है कि फंसे हुए हो तो आज़ादी के लिए काम करो। फंसे भी हुए हो और अपनी बेड़ियाँ बजा-बजाकर नाच भी रहे हो ये बात तो कुछ सुहाती नहीं है।

या तो एक झटके में मुक्त हो जाओ या फिर तुम लगातार अपनी बेड़ियाँ काटने के लिए संघर्षरत रहो। ये चीज़ मुझसे बर्दाश्त नहीं होती कि एक व्यक्ति जिसकी ज़िन्दगी निश्चित रूप से बंधन में है और वो बंधन उसने खुद चुन रखे हैं डर के मारे, अज्ञान के मारे वो अपने आपको ये भरोसा दिलाने में लगा हुआ है कि मैं तो सहज हूँ, शांत हूँ, मुक्त हूँ।

जब तक आपको इस तरह की नौकरी में रहना है लगातार अपने आपको याद दिलाते रहिए- मैं फंसा हुआ हूँ, मैं तड़प रहा हूँ। तो अगर किसी मज़बूरी के कारण कुछ समय तक आपको वहाँ रहना ही है तो एक तीव्र आग होनी चाहिए भीतर आज़ादी के लिए।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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