नौकरी के निर्णय — कुछ लोगों को लालच से ज़्यादा आज़ादी प्यारी होती है

नौकरी के निर्णय — कुछ लोगों को लालच से ज़्यादा आज़ादी प्यारी होती है

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, हमे अपने कैरियर का चुनाव किस आधार पर करना चाहिए? क्या हमें अपना कैरियर अपने व्यक्तित्व के आधार पर चुनना चाहिए या जिसमे रुचि हो और सफलता मिले उस आधार पर?

आचार्य प्रशांत: नहीं, आमतौर पर हम, जिसे कैरियर कह रहे हैं, वो चुनते ही ऐसे हैं कि देख लेते हैं कि अर्थव्यवस्था में कौन-कौनसे क्षेत्र हैं जिनमें रोटी-पानी का जुगाड़ हो सकता है, जिनमें नौकरियाँ मौजूद हैं या व्यवसाय की संभावना है। और फिर उनमें से जहाँ हमारी गुंजाइश बैठ रही होती है, या जहाँ हमें ज़्यादा लाभ और सुविधा दिखाई दे रहा होता है, हम उधर घुस जाते हैं। ठीक है न? आमतौर पर हमारा तरीका यह होता है।

तरीका ही यह है कि बाहर देखकर के तय करो कि क्या काम करना है। वो आसान तरीका है न। बाहर तुम्हारे आठ तरह की थाली रखी हुई है, तुम्हें उसमें से कोई उठा लेनी है। इतना तो पक्का ही है कि जो भी थाली उठाओगे, उसमें कुछ खाने का मौजूद होगा। तो आदमी को सुविधा लगती है। कहता है, “ये आठ पकी पकाई थालियाँ रखी हैं। ये आठ पके पकाए जो क्षेत्र हैं अर्थव्यवस्था के, वो तैयार हैं मुझे नौकरी देने के लिए। मैं इनमें से किसी को भी चुन लेता हूँ। मैं किसी को भी चुनूँ, एक चीज़ तो निश्चित और साझी रहेगी, क्या? पैसा आता रहेगा। एक सुव्यवस्थित नौकरी तो तैयार ही है। एक पूरा क्षेत्र पहले से ही निर्मित खड़ा है जहाँ रूपए-पैसे का आदान-प्रदान हो रहा है, काम धंधा चल रहा है।” हम ऐसे चलते हैं क्योंकि यह रास्ता सुविधा का है।

जो दूसरा रास्ता है, जो असली है, लेकिन जिसमें थोड़ी असुविधा है, वह यह है कि तुम देखो कि तुम्हारे मन की जो हालत है, जैसा तुम्हारा व्यक्तित्व है, और दुनिया का जो हाल-चाल है, कौनसे काम की ज़रूरत है। ज़रूरत-आवश्यकता — अभी तुम उसमें यह नहीं देख रहे हो कि कौन-कौनसा काम करने के लिए उपलब्ध है। तुम्हारा पैमाना बदल गया है। जो तुम्हारा मापदंड है, जो तुम्हारा क्राइटेरिया है वह बदल गया है। अब वह यह नहीं है कि उपलब्धता; “उपलब्धता किन-किन नौकरियों की है भाई? देखना जरा, यह पाँच वैकेंसी निकली हैं।”

‘उपलब्धता’ नहीं है अब पैमाना, अब पैमाना है ‘आवश्यकता’। अब आप यह नहीं देख रहे कि कौनसी नौकरियाँ मिल रही हैं, अब तुम यह देख रहे हो कि कौनसा काम आवश्यक है किया जाना, चाहे दुनिया के लिए, चाहे अपने लिए। लेकिन जो काम आवश्यक है किया जाना, उसमें तो यह कतई आवश्यक नहीं कि नौकरी उपलब्ध हो।

वह काम ज़रूरी है कि किया जाए, लेकिन यह तो बिलकुल भी आवश्यक नहीं कि वह काम करने के तुम्हें कोई पैसे देगा। क्योंकि वह कोई ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर (व्यवस्थित क्षेत्र) तो है नहीं अर्थव्यवस्था का कि तुम कहो, “ठीक है, अब हम इस…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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