नौकरी करनी है?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपका अभी-अभी एक वीडियो आया है “तरह-तरह के जानवर।” उसमें काफी लोग ये सवाल पूछ रहे हैं कि आप बोलते रहते हैं कि सही नौकरी करो, सही नौकरी करो। तो ये सही नौकरी होती क्या है? हमें तो अपना पेट भी पालना होता है। आपने तो बोल दिया सही नौकरी करो, तो हम लोग सही नौकरी कैसे करें और कैसे ढूँढे उसको?

आचार्य प्रशांत: ज़िन्दगी के बारे में जो बड़े-से-बड़े भ्रम हमें दे दिए गए हैं, हमारे दिमाग में रहते हैं, उनमें से एक ये है कि नौकरी पेट पालने के लिए होती है। और ये भ्रम भी इसलिए है क्योंकि हम समझते ही नहीं हैं कि हम कौन हैं और आदमी काम क्यों करता है।

देखिए, दुनिया में इतने जीव-जानवर होते हैं, वो सब कुछ-न-कुछ दिनभर करते ही रहते हैं न? उन सब में आदमी अकेला है जो ‘काम’ करता है, बाकी सब सिर्फ श्रम करते हैं। और वो जो कुछ भी कर रहे होते हैं, चाहे गधा, घोड़ा, खरगोश जो भी हो, वो अपना पेट पालने के लिए कर रहे होते हैं। तो ये हमारे शरीर की अनिवार्यता है कि पेट पालने के लिए कुछ-न-कुछ तो करना पड़ेगा। उतना जानवर भी करते हैं, ठीक है? उतना काम जानवर भी करते हैं कि पेट चलाना है तो इधर-उधर दौड़-भाग करेंगे, पत्ती, फल, ये सब इकठ्ठा करेंगे, या फिर शिकार करेंगे।

अब सवाल ये है कि आदमी भी अगर यही कर रहा है कि “बताओ कहाँ पैसे मिल जाएँगे जिससे पेट चलता रहे?” तो वो जानवर के ही तल का काम कर रहा है न? आदमी को ऊपर जाना होता है थोड़ा। आदमी के काम का, कर्म का उद्देश्य सिर्फ ये नहीं हो सकता कि आपको पेट चलाना है। पेट भी चलाना है, कौन मना कर रहा है कि पेट नहीं चलाओ? लेकिन सिर्फ पेट चलाने के लिए काम कर…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org