नींद से उठने में थोड़ा कष्ट तो होगा

आचार्य प्रशांत: सूरज का निकलना रात की मौत है, तो क्या सूरज नहीं निकले?

रोशनी का आना, अँधेरे की मौत है। तो क्या रोशनी न आये? दवाई का खाना, बैक्टीरिया और वायरस की मौत है। तो क्या दवाई न खाई जाये? जवानी का आना, बचपन की मौत है। तो क्या जवानी न आये?

प्रश्नकर्ता: सर, जैसे आपने अभी बैक्टीरिया की बात की, तो वो भी अपने बारे में सोच रहे हैं और हम भी अपने बारे में सोच रहे हैं। तो क्या इसका मतलब यह है कि स्वार्थी होना अच्छी बात है?

आचार्य: नहीं, अपना फायदा नहीं है इसमें। जो हम दूसरों को कष्ट देने की बात कर रहे हैं, कि स्वार्थी होंगे तो दूसरों को कष्ट होगा, उस कष्ट में उनका भी फ़ायदा है।

अपनी जागृति में तुम जो भी करोगे वो शुरू में दूसरों कष्ट दे सकता है पर वो उनके फायदे का ही होगा। उदाहरण देता हूँ। तुम उठ गए हो पर कोई और है जो सोया हुआ है। और एक सोए हुए आदमी को तुम जगाने की कोशिश करते हो तो वो क्या करता है? वो यही कहेगा कि तुम क्या कर रहे हो, तुम मेरे लिए कष्ट का कारण बन रहे हो। तो उसे कष्ट होगा, उसे बुरा लगेगा लेकिन तुम्हें उसे उठाना ही चाहिए।

एक चिड़िया होती है, अगर वो कई सालो से पिंजरे में कैद है और अगर तुम उसके पिंजरे का दरवाज़ा खोल दो, तो अक्सर देखा गया है कि वो बाहर नहीं उड़ेगी। वो उसी में इसलिए बैठी रहेगी क्योंकि उसे आदत लग गयी है। इतना ही नहीं पंख कमज़ोर हो गये हैं, पंख जब खोले ही नहीं तो पंखो में जान नहीं रह गयी। फिर पिंजरे में तो इतना तो है न कि बिल्ली से, बाघ से बची रहती है और ये भी है कि सुबह-शाम मालिक पिंजरे में रोटी डाल देता है। तो चिड़िया को उसमें सुकून मिलने लगता है। जब तुम पिंजरा खोलोगे तो वो उड़ेगी नहीं, जब तुम उसे हाथ डाल कर बाहर निकालोगे तो वो तुम्हारे हाथ में चोंच मारेगी। वो कहेगी, ‘ये मुझे परेशान कर रहा है, ये मेरा दुश्मन है। ये चाहता है कि मैं मर जाऊँ’। क्या तुम उस चिड़िया को निकालोगे नहीं? उसे छोड़ोगे नहीं हवा में? हाँ, कुछ समय बाद जब वो उड़ने का मज़ा जान जाएगी, तब वो तुम्हारा अहसान मानेगी लेकिन शुरू में तो यही कहेगी कि तुम मुझे कष्ट दे रहे हो।

तुम अपनी चेतना में जो भी करते हो वो अच्छा ही होगा।

अगर किसी को कष्ट हो रहा है तो तुम्हारे कारण नहीं हो रहा उसे कष्ट अपनी बेहोशी के कारण हो रहा है। तो उसके कष्ट का कारण तुम हो भी नहीं, उसकी अपनी बेहोशी ही उसके कष्ट का कारण है। तो तुम इसमें अपने आप को उत्तरदायी मत मान लेना। हमें लगता है कि कोई हमारी वजह से तकलीफ में है और खासतौर पर अगर वो हमारा नज़दीकी हो तो हम और ज़्यादा ग्लानि महसूस करते हैं। ये मत करने लग जाना।

पहली बात, उसे कष्ट हो रहा है तो अच्छी बात है। और दूसरी बात, तुम उसके कष्ट का कारण हो ही नहीं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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