निर्भयता, न कि अभयता

प्रश्नकर्ता: सेल्फ-कॉन्फिडेंस औरओवर-कॉन्फिडेंस में अंतर क्या है?

आचार्य प्रशांत: ये जो शब्द है कॉन्फिडेंस, इसको थोड़ा समझना पड़ेगा। हमें बचपन से ही यह बताया गया है कि कॉन्फिडेंस में कोई विषेश बात है। हिंदी में इसको कहेंगे अभयता, पर हम देख नहीं पाए हैं कि भय और अभय एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ये दोनों हमेशा साथ-साथ चलते हैं। जो डरा हुआ है, उसे ही कॉन्फिडेंस की ज़रूरत पड़ती है अन्यथा तुम कॉन्फिडेंस की माँग ही नहीं करोगे। मैं अभी तुमसे बोल रहा हूँ कि जब भय ही नहीं है तो अभय का सवाल ही नहीं पैदा होता। जब फ़ीयर ही नहीं है तो कॉन्फिडेंस चाहिए क्यों? पर तुमसे कहा गया है कि कॉंफिडेंट रहो, दूसरे शब्दों में तुमसे कहा गया है कि डरे हुए रहो क्योंकि जो डरा हुआ है वही कॉंफिडेंट हो सकता है। जो डरा ही नहीं उसके लिए कॉन्फिडेंस कैसा?

बिलकुल डरे न होने के लिए, डर के पार हो जाने के लिए एक दूसरा शब्द है, निर्भयता। निर्भयता और अभयता में ज़मीन असमान का फ़र्क है। तुम अभयता की तलाश में हो, तुम निर्भय नहीं हो।

निर्भय होने का अर्थ है कि भय का विचार ही नहीं ।

तो जो द्वैत है, भय का और अभय का, हम उसके पार हो गए। हम वहाँ स्तिथ हैं, जहाँ भय हमें छूता ही नहीं है। भूलना नहीं कि भय जितना गहरा होगा, कॉन्फिडेंस उतना ही ज़्यादा चाहिए होगा। स्थिति तुमको जितना डराएगी, तुम उतना ही ज़्यादा कहोगे कि किसी तरीके से कॉन्फिडेंस मिल जाए और जो आदमी बड़ा कॉंफिडेंट दिखाई पड़ता हो, पक्का है कि वो बहुत ज़्यादा डरा हुआ है अन्यथा वो इतना मोटा कवच पहनता क्यों कॉन्फिडेंस का? लेकिन तुम्हारी पूरी शिक्षा तो यह है कि जो लोग कॉंफिडेंट दिखें उनको आदर्श बना लो।

अभयता मत मांगो, सहजता मांगो।

जो कॉंफिडेंट दिखे, उसमें कुछ विशेष नहीं है। विशेष उसमें है, जो सहज है। कॉन्फिडेंस तो एक प्रकार की हिंसा है और सहजता में प्रेम है। कॉन्फिडेंस चिल्लाता है, सहजता शांत रहती है; सहज रहो। जो बात कहनी है, कह दी। कॉन्फिडेंस क्या चाहिए? जो करना था कर रहे हैं, उसमें शोर कैसा? चेहरा निर्दोष है, शांत है और स्थिर है; आक्रामक नहीं रहे। ऑंखें झील जैसी हैं, बिलकुल ठहरी हुई। उनमें पैना-पन नहीं है, जो एक कॉंफिडेंट आदमी में होता है।

समाज के अपने स्वार्थ हैं यह कहने में कि कॉंफिडेंट रहो क्योंकि यदि भय चला गया तो तुम समाज से भी नहीं डरोगे। तुम पूरी व्यवस्था से भी नहीं डरोगे, तुम परिवार से भी नहीं डरोगे इसीलए ये सारी संस्थाएं तुमसे ये नहीं कहेंगी कि निर्भय हो जाओ, सहज हो जाओ। ये तुमसे कहेंगी कि डरते तो रहो पर साथ-साथ कॉंफिडेंट भी रहो। ये गहरी चाल है, तुम इस चाल के शिकार मत बन जाना। तुमसे कहा जा…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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