निर्णय के लिए दूसरों पर निर्भरता

प्रस्तुत लेख आचार्य प्रशांत के संवाद सत्र का अंश है।

आचार्य प्रशांत: जब तक तुम्हें निर्णय लेने ‘पड़’ रहे हैं, तुम्हें दूसरों पर आश्रित होना ही पड़ेगा। जब तक तुम्हें निर्णय लेने ‘पड़’ रहे हैं, तुम्हें दूसरों का सहारा लेना ही पड़ेगा।

निर्णय का अर्थ है कि बहुत सारे विकल्प हैं। निर्णय तभी करते हो न जब कई विकल्प हों? निर्णय का अर्थ ही है उन विकल्पों में मुझे सूझ ही नहीं रहा कि मेरे लिए उचित क्या है और मैं फंस गया हूँ। कई राहें खुल रही हैं और उन राहों में से मुझे किधर जाना है? मैं जान नहीं रहा। अब मुझे आवश्यकता पड़ रही है निर्णय लेने की।

जहाँ कहीं भी निर्णय लेने की आवश्यकता है वहाँ पर एक ऐसा निर्णयकर्ता खड़ा होगा, डिसिज़न मेकर खड़ा होगा जो कहेगा कि मुझे अब निर्णय लेना है। डिसीज़न मेकिंग अगर होगी तो डिसीज़न मेकर भी होगा न? अब मुझे बताओ कि डिसीज़न मेकर कौन है? यह जो निर्णयता है यह कौन है?

प्रश्नकर्ता: माइंड।

आचार्य प्रशांत: माइंड किसका?

प्रश्नकर्ता: हमारा माइंड।

आचार्य प्रशांत: अब इतनी एच.आई.डी.पी. (संस्था का एक कोर्स) कर ली है, अब मुझे बताओ कि जिसे तुम अपना माइंड कहते हो, अपना मन कहते हो, यह कैसे बना है? हमारा मन कहाँ से आता है?

प्रश्नकर्ता: पास्ट से।

आचार्य प्रशांत: पास्ट से आता है। मन जो है हमारा वो या तो दूसरों से आता है, दूसरे जो अलग व्यक्ति और अलग वस्तुएँ हैं या विचार बाहर के या हमारे भीतर से…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org