बनाने वाले ने हमें ऐसा क्यों बनाया?

आचार्य प्रशांत: देव जी पूछते हैं, आचार्य जी, प्रणाम। कई बार ये प्रश्न मेरे मन में उठता है, आज के सूत्रों से फिर उठ बैठा। सूत्र संख्या लिखी नहीं। आगे कहते हैं, हमारी इन्द्रियां बहिर्मुखी हैं, ये तो तथ्य है, इनका मूल स्त्रोत परमात्मा है, ये भी ठीक, और इन्द्रियों के माध्यम से हमें परमात्मा की ही तलाश है ऐसा आप समझाते हैं, मगर हम इन्द्रियों और मन के गुलाम हैं और इसमें भारी पीड़ा है। प्रश्न ये है कि फिर हमें ऐसा बनाया ही क्यों गया है, बनाने वाले की मनसा क्या है? भली बात। दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई, काहे को दुनिया बनाई। दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई? बढ़िया किया। अब परमात्मा पर आपने मन तो बैठा ही दिया है और भी चीजें बैठा दीजिए। परमात्मा बड़ा आदमी है तो उसके पास एक मर्सिडीज़ गाड़ी होगी, परमात्मा ज़रा ज्ञानी है तो उसके दाढ़ी होगी और परमात्मा पितातुल्य है तो उसकी दाढ़ी के बाल सफ़ेद होंगे। और क्योंकि परमात्मा है इसलिए जरा गठीला, लम्बा- चौढ़ा होगा, बिल्कुल खड़ा हो गया किरदार। ये सब हम ना करें इसीलिए ज्ञानियों ने कहा कि उसको अज्ञेय कहना और फिर आगे जाना मत। अज्ञेय कह कर रुक जाना। उसके साथ ना कोई कल्पना जोड़ना, ना उपाधि, ये कुछ प्राथमिक बातें है जो बताने वाले बता गए।

परमात्मा तक उठना होता है, उसे अपने तल पर गिरा नहीं लेना होता। ये नहीं पूछना होता कि हम ऐसे क्यों हैं? पूछना होता है कि हम कैसे हैं क्योंकि हम जैसे भी हैं उसे निरंतर जानना होता है। जब आप कहते हैं कि मैं ऐसा क्यों हूं, तो आपका भरोसा है कि आप जान गए हैं कि आप कैसे हैं। क्या हैं आप ये जान गए हैं, तो अब आप अपने को…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org