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नियमों का डर

आचार्य प्रशांत: डर और नियम में क्या संबंध है?

गुरुत्वाकर्षण का नियम ले लेते हैं। आपने नहीं बनाया, लेकिन नियम है। अभी हम यहाँ प्रथम फ्लोर पर बैठे हैं। ठीक है? हम में जो समझदार है उसके लिए ये गुरुत्वाकर्षण का नियम बड़े काम का है। गुरुत्वाकर्षण न हो तो मैं यहाँ ऐसे खड़ा नहीं रह सकता, फ्रिक्शन ना हो तो मैं अभी यहाँ से गिर जाऊंगा। गुरुत्वाकर्षण नहीं, तो फ्रिक्शन भी नहीं होगा, अभी गिरना पड़ेगा मुझे। पर जो नासमझ है उसके के लिए ये नियम भय का कारण भी हो सकता है। वो सोच सकता है कि मैं यहाँ से बाहर निकलने के बजाय वहां से कूद जाऊंगा, और जब वो कूदने की सोचेगा तो उसे लगेगा कि कूदूँगा तो हाथ-पाँव टूट जायेंगे। अब ये गुरुत्वाकर्षण का नियम तुम्हें डराने के लिए नहीं बनाया गया है। ये डर तुम्हारी अपनी नासमझी से निकल रहा है।

इसी तरह

मन के भी कुछ नियम होते हैं।

जो उन नियमों को समझ लेगा वो राजा बन जायेगा, जो नहीं समझेगा वो भुगतेगा

और उसे पता भी नहीं चलेगा कि वो क्यों भुगत रहा है, पर भुगतेगा। बात समझ रहे हो? बात तुम्हारी ठीक है। सही बात तो ये है कि परम को भी बहुत सारे लोगों ने ‘भयानक’ ही कहा है। तुमने अक्सर सुना होगा कि लोग कहते हैं, ‘ईश्वर सुन्दर है, ईश्वर सत्य है’ परन्तु ऐसे बहुत से ध्यान-मग्न लोग हैं जिन्होंने यह भी कहा है कि ‘ईश्वर भयानक है’। बेशक भयानक है। उनके लिए जो नासमझी का जीवन बिता रहे हैं, उनके लिए जो पहले से ही डरे हुए हैं। जो डरा हुआ है नियम उसे और डराएगा। जो नियम को…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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