नियत कर्म क्या है? गृहस्थी अध्यात्म में कब बाधा बनती है?
नियतस्य तु संन्यासः कर्मणो नोपपद्यते।
मोहात्तस्य परित्यागस्तामसः परिकीर्तितः।।
नियत कर्म का त्याग उचित नहीं है।
मोह के कारण नियत कर्म का त्याग ही तामस कहा गया है।
— श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १८, श्लोक ७
आचार्य प्रशांत: अभी हम तामस के बारे में ही बात कर रहे थे। जो बातें अभी तक करीं, उन सबको इस प्रश्न के संदर्भ में रख दीजिए।
प्रश्नकर्ता: चरण स्पर्श, आचार्य जी। हम नियत कर्म की परिभाषा को कैसे समझें? और गृहस्थ जीवन के लिए त्याग का सही अर्थ क्या है? समझाने की अनुकंपा करें।
आचार्य: नियत कर्म है अपनी नियति को पाने के लिए किया गया कर्म। क्या है नियति आपकी? मुक्ति, आनंद, स्पष्टता, बोध, सरलता, यह नियति है।
क्यों इसे नियति कह रहा हूँ? क्योंकि यही वो है जिसको पाए बिना आप छटपटाते रहते हैं। तो निश्चित रूप से यही नियति होगी न, क्योंकि इसी को पाए बिना तो बेचैनी है इतनी। इसी को पाने के लिए ही तो ये सारी कयावद है, सारी उछलकूद है। यही नियति है।
जो कर्म आपको नियति की अर्थात मुक्ति की, और सरलता की और आनंद की ओर ले जाए, वो नियत कर्म है।
तामसिकता क्या है? वो सबकुछ जो आपको आपकी नियति से वंचित रखकर किसी और जगह पर स्थापित रखे, कहलाती है तामसिकता।