निंदा का सुख!

इंसान दूसरों के भीतर सिर्फ़ कमियाँं ही नहीं देखता, वो दूसरों को ऊँचा चढ़ा कर आदर्श भी बनाता है। असल में हम दूसरों को जब भी देखते हैं, तो दो ही तरीके से देखते हैं। पहला, इसमें खोट क्या है। दूसरा, इसमें प्रशंसनीय क्या है।

मैंने अपने लिए कुछ मूल्य निर्धारित कर रखे हैं। उन मूल्यों पर मैंने तुमको तोला और पाया कि हल्के हो। तो मैंने कहा, ‘खोट है इसमें कुछ’। फिर मैंने किसी और को लिया और मैंने कहा, ‘वो तो बड़ा तारीफ़ के काबिल है’। और तारीफ़ के काबिल…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org