ना वो बढ़ता है, ना वो घटता है
बोध में न कुछ अच्छा होता है, न बुरा होता है।
‘आनंद’, अच्छा लगने की अवस्था नहीं होती। इसीलिए इतनी बार कहता हूँ कि ‘आनंद’ मज़ा नहीं है। ‘आनंद’ अच्छा नहीं लगेगा।
‘आनंद’, ध्यान से अगर देखो, तो बस अनुपस्थिति है अच्छे लगने की भी और बुरे लगने की भी और चूँकि वही शून्यता, वही खालीपन तुम्हारा स्वभाव है, इसीलिए मन, ‘आनंद’ की अवस्था में पीड़ा नहीं अनुभव करता।
बस इतना होता है।
हमारी बाकी सारी अवस्थाएँ पीड़ा की अवस्थाएँ हैं। सुख की पीड़ा है, नहीं तो दुःख की पीड़ा है पर हमारा जीवन लगातार मात्र पीड़ा ही है।
‘आनंद’ वो अवस्था है, जिसमें न सुख की पीड़ा है, न दुःख की पीड़ा है। ‘आनंद’ मात्र मुक्ति है, हर प्रकार की पीड़ा से। सुख की पीड़ा से भी और दुःख की पीड़ा से भी। ‘आनंद’ को कोई सुख न समझ ले।
जैसे बोध ज्ञान नहीं, ठीक उसी तरह से ‘आनंद’ सुख नहीं।
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