नशा करके भी तो खुशी मिलती है

दो बातें होती हैं आध्यात्मिक मुक्ति में, जो नशे में नहीं होती हैं। पहली पूर्णता और दूसरी नित्यता।

तुम कितनी भी बड़ी उपलब्धि हासिल कर लो या कितना भी बड़ा नशा कर लो, वो पूरा नहीं हो सकता, उसमें कुछ न कुछ खोट बचा रह जाता है।

नशा कितना भी गहरा जाए, जो नशे में है, उसमें जरा सा होश बचा रहता है। तुम पर पूरा नशा छा गया तो फिर नशे का मजा कौन लेगा? कैसा भी नशा चढ़ा हो, उतरेगा। सूरज कितना भी ऊँचा उगा हो, ढलेगा।

आध्यात्मिक मुक्ति में पूर्णता भी है और नित्यता भी है। तुम्हारी इच्छा शांत होती भी है तो किसी विषय के प्रति शांत होती है, न कि इच्छा शांत होती है। इच्छा अगर बची हुई है तो अपने लिए अनगिनत विषय खोजेगी। मुक्ति में तुम विषयों से ही नहीं बल्कि इच्छाओं से भी मुक्त हो जाते हो।

कोई भी इच्छा तुम्हें यूँ ही थोड़ी पकड़ लेती है। तुम्हारे भीतर कुछ है जो किसी विषय से जाकर भीख माँगता है पूर्णता की। तुम्हारे भीतर कोई बैठा है कटोरा लेकर जो कभी इस वस्तु कभी उस विषय, कभी इस जगह कभी उस जगह भीख माँगता रहता है, हमें पूरा कर दो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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