नवरात्रि के नौ रूपों को कैसे समझें?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कल से जो हिन्दुओं की परंपरा का एक प्रमुख उत्सव माना जाता है, नवरात्रि, वो शुरू हो रहा है। शक्ति के नौ रूपों की आध्यात्मिक उपयोगिता क्या है? शिव-शक्ति को माना जाता है कि एक ही उनका स्वरूप है, फिर ये नौ अलग-अलग स्वरूप क्या दर्शाते हैं? इनकी क्या महत्ता है और ये क्या सिग्निफाई (दर्शित) करते हैं?

कभी हम देखते हैं कि कोई माता है शैलपुत्री या ब्रह्मचारिणी, उनके हाथ में ‘कमंडल’ है। किसी के हाथ में सिर्फ़ माला है। और एक वो रंग देखते हैं, कात्यायनी भी वहीं है, दुष्टों का संहार भी वो करने वाली है। तो क्या ये अलग-अलग रूप हैं, या ये हमारे भीतर के ही कुछ अलग चेहरे हैं?

नवरात्रों का क्या महत्व है हमारे लिए, और हम उसको कैसे अपने आम जीवन के लिए समझ सकते हैं?

आचार्य प्रशांत: पहली बात तो ये कि नौ को ‘नौ’ मत मानो। नौ का आंकड़ा सांकेतिक है। नौ का मतलब कोई एक नहीं, नौ का मतलब दो भी नहीं, नौ का मतलब तीन भी नहीं; नौ का मतलब बहुत सारे। शिव की शक्ति जितने भी अनंत रूपों में प्रकट हो सकती है, होती है। ब्रह्मचारिणी है, महागौरी है तो शांत है, क्षमा करने वाली है। और तुमने कहा कात्यायनी है या चंद्रघंटा है, स्कंदमाता है तो संहार करने वाली हैं। सृजन भी कर सकती हैं, विनाश भी कर सकती हैं।

सब तरह के कर्म शिव की अर्थात सत्य की शक्ति के द्वारा संभव हैं। जब सब तरह के कर्म संभव हैं तो फिर कौन-सा कर्म किया जाए? वो कर्म किया जाए जिसके केंद्र में शिव बैठे हों। जब तक तुम्हारे कर्म के केंद्र में शिव बैठे हैं, तब तक तुम जो भी

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org