नवरात्रि का असली अर्थ, और मनाने का सही तरीका
--
आचार्य प्रशांत: नवदुर्गा का माहौल है। शक्ति के बारे में कुछ बातें करना प्रासंगिक रहेगा। शिव केंद्र है, शिव सत्य है। शिव वो हैं जिन तक मन, ‘मन’ रह कर पहुँच नहीं सकता। शिव को तो रहस्य रहना है सदा। शक्ति, मन है, संसार है। शिव में स्थिरता है, अचलता है। शक्ति में गति है, चलनशीलता है।
शक्ति जीवन है, शक्ति वो सब कुछ है जिससे आप एक मनुष्य होकर के सम्बन्ध रख सकते हैं। शक्ति भाव है, शक्ति विचार है। शक्ति में संसार के सारे उतार-चढ़ाव हैं, आँसू हैं और मुस्कुराहटें हैं।
इन नौ दिनों में, नवरात्रि में, शक्ति के नौ रूपों की पूजा बताती है हमको कि संसार के, जीवन के समस्त रूप पूजनीय हैं, और वो बहुत कुछ हमको धर्म के विषय में सिखा जाती है। कहा गया है हमसे कि सत्य अरूप है, सत्य अचिंत्य है, निर्गुण है, निराकार है। लेकिन जब आप शक्ति के नौ रूपों को पूजते हो तो आपसे उससे आगे की एक बात कही जाती है। ऐसी बात जो ज़्यादा सार्थक, व्यवहारिक और उपयोगी है।
सत्य होगा अरूप, पर हम रूपों में जीते हैं। सत्य होगा अचिंत्य, पर हम विचारों और भावों में जीते हैं। सत्य होगा निराकार, पर हम आकार, रंग और देह में जीते हैं। सत्य होगा असीम, पर हमारा तो सब कुछ सीमित है। जिन्होंने असीम की पूजा शुरू कर दी, निर्गुण, निराकार को पकड़ने की चेष्टा कर ली, जिन्होंने ये कह दिया कि वो सब कुछ प्रकट और व्यक्त है, वो तो क्षुद्र है और असत्य है, उन्होंने जीवन से ही नाता तोड़ लिया, उनका मन बिल्कुल शुष्क और पाषाण हो गया।
अरूप तक जाने का एक मात्र मार्ग रूप है।
सत्य तक जाने का, हमारे लिए एक मात्र मार्ग संसार है। शिव के अनवेषण का एक मात्र मार्ग शक्ति है।
जिन्होंने संसार से किनारा कर लिया, ये कह कर के कि संसार तो सत्य नहीं है, उनहोंने संसार को तो खोया ही, सत्य से भी और दूर हो गए।
शक्ति के नौ रूप बताते हैं हमको कि जीवन अपने समस्त रंगों में सम्माननीय है, प्यारा है, पूजनीय है। धर्म जीवन को काटने की बात नहीं है कि कुछ बातों का, कुछ पहलुओं का, कुछ रंगों का निषेध कर दिया। करा जा सकता है, सीखा जा सकता है, बहुत मुश्किल नहीं है। आप अपने आपको शिक्षा दे सकते हैं कि होठों को इतना सख्त बना लें कि मुस्कुराएँ ही नहीं, कि आँखों को ऐसा पत्थर कर लें की वो रोए नहीं, मन को ऐसा जड़ कर दें कि वो कभी तरंगित ही न हो। पर ये शिक्षा धर्म नहीं है। हमने तो वैसे भी अपने ऊपर हज़ार वर्जनाएँ लगाई हुई हैं और इन वर्जनाओं को और बढ़ाने का नाम धर्म नहीं है।