नया जीवन धीरे धीरे आता है, या एक छलाँग में?
प्रश्नकर्ता: सर, पढ़ा है मैंने कहीं की एक होता है, “टेक अ प्लंज” और दूसरा होता है की अपने जड़ मजबूत करो। ये समझ में नहीं आता है।
आचार्य प्रशांत: बेटा दोनों घटनाएँ एक साथ घटती हैं। मज़बूत जड़ से पौधा न निकले ये होगा नहीं ना। जड़ में जितनी मज़बूती है उस हिसाब से उसमें से अंकुरण होगा, पौधा थोड़ा बाहर आएगा। जब आ रहा हो तो मैं कहता हूँ, “उस को आने दो।” जितना जान लिया है वह अभिव्यक्त होना चाहता है, उसको अभिव्यक्त होने दो। पर तुम्हें यह पता हो कि कितना जान लिया है, कहाँ पर अभी सीमा बनी हुई है, इसकी तुम्हें चेतना हो, वहाँ पर तुम गलतफहमी मैं न रहो।
देखो दो बातें होती हैं, हम में से यहाँ पर जड़-हीन तो कोई भी नहीं है, जड़ तो सबके पास है। कोई भी यहाँ पर बिलकुल ही पगला तो नहीं बैठा है। ठीक है ना? जब जड़ है तो उस जड़ में से जो फूटना चाहता है उसको फूटने दो ना। तो जब मैं यह कहता हूं, “टेक अ प्लंज”, तो मैं कह रहा हूँ कि जो पौधा अब बाहर आने को तैयार बैठा है तुम उसके ऊपर चढ़कर मत बैठ जाओ कि बीज अब तैयार हो गया है, पर तुम बीज के ऊपर बैठ गए हो कि पौधा नहीं निकलने दूंगा।
जो आपसे बोल रहा था अभी, कि जब रोशनी दिख रही है तो उसकी ओर अपने आप को बढ़ने दो, नहीं तो वो क्रोध बन जाएगी उर्जा। तो जब मैं कहता हूँ, “टेक अ प्लंज”, तो मैं कहता हूँ कि अब जितना तुम जानने लग गए हो, जितना तुम्हारा ध्यान गहराने लग गया है, उसके अनुरूप अब कर्म को होने दो, फालतू मत डरो। यह बात समझ में आ रही है?