ध्यान की विधियों की हकीकत
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। ओशो ने हमें ध्यान की विधियाँ दी, आप वो भी छीन रहे हैं। अब हम क्या करें?
आचार्य: नहीं, मैं छीन नहीं रहा विधियाँ। मैं कह रहा हूँ कि विधियों को विधियों जितनी ही महत्ता दो, बस। विधि द्वार है। द्वार को द्वार जितनी ही अहमियत दो। द्वार इसलिए नहीं है कि द्वार पर ही ठिठक गए, द्वार पर ही अटक गए, द्वार पर ही घर बना लिया। द्वार इसलिए है कि उसको लॉंघो, कहीं और पहुँचो।