ध्यान की इतनी विधियाँ क्यों?

विधियाँ उनके लिये हैं, जिन्हें सत्य को तो पाना है, और अपनी ज़िद को भी बचाना है। ख़ुदा को भी पाना है, और अपनी ज़िद को भी बचाना है। ध्यान की विधियाँ उनके लिये हैं।

जैसे कि कोई सौ किलो वज़न उठाकर दौड़ने का अभ्यास करे, और कहे कि बहुत मुश्किल है, और मंज़िल पर पहुँचने के लिये, कम से कम पाँच वर्ष का अभ्यास तो चाहिये। बिल्कुल चाहिये, पाँच वर्ष का अभ्यास, अगर ज़िद है तुम्हारी कि सौ किलो वज़न लेकर ही चलना है। अब ये जो सौ किलो वज़न है, इसका नाम ज़िद है, धृति है, अहंकार है।

तो एक तो तरीका यह है कि इस अहंकार को, उस झूठी आत्मीयता को बचाये रखें, और साथ ही साथ ज़बरदस्त अभ्यास करते जायें। तो एक दिन, सुदूर भविष्य में एक समय ऐसा आयेगा, जब आप सौ किलो का वज़न लेकर भी आगे बढ़ जायेंगे, पहाड़ चढ़ जायेंगे। और सहज तरीका यह है कि वो जो ज़िद है, उसको सहज ही नीचे रख दीजिये, और सहज ही आगे बढ़ जाईये। वो जो आप चाहते हैं, वो सहज प्राप्य है।

तो विधियाँ उनके लिये हैं, जो सशरीर स्वर्ग पहुँचना चाहते हैं। जो कहते हैं कि हमारा काम -धंधा, हमारी धारणाएँ, हमारी मान्यताएँ, जैसे हैं, वैसी ही चलती रहें, और साथ ही साथ मुक्ति भी मिल जाये। तो फिर उनको कहा गया है कि अभ्यास करो। अन्यथा अभ्यास की कोई ज़रुरत नहीं है।

अतः अभ्यास आवश्यक है या नहीं, वो इस बात पर निर्भर करता है कि आपमें सत्य के प्रति एकनिष्ठ प्यास है या नहीं। अगर आपमें एकनिष्ठ प्यास है, तो किसी अभ्यास की ज़रुरत नहीं। पर अगर आपका चित्त यदि खंडित है, बंटा हुआ है, दस दिशाओं में आसक्त है, तो फिर तो बहुत अभ्यास करना ही पड़ेगा।

आचार्य प्रशांत से निजी रूप से मिलने व जुड़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

आचार्य जी से और निकटता के इच्छुक हैं? प्रतिदिन उनके जीवन और कार्य की सजीव झलकें और खबरें पाने के लिए : पैट्रन बनें !

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org