‘ध्यान’ का असल अर्थ
जब ‘बोध ‘मात्र ध्येय हो, तब मन की हालत को ‘ध्यान’ कहते हैं।
ये थोड़ी ही है कि शिकार खेलने गए हो और हिरण को गोली मारनी है, और निशाना चूक रहा है, तो कह रहे हो “ध्यान मेरा उचटा हुआ है, इसीलिए हिरण ज़िंदा है अभी। अगली बार ‘ध्यान’ से मारूँगा, और ख़त्म ही कर दूँगा इसको?” ये ‘ध्यान’ है? पर तुम तो ‘ध्यान’ शब्द का उपयोग ऐसे ही कर लेते हो।
“ये बटर चिकन में बटर ज़रा कम है, ‘ध्यान’ से नहीं बनाया क्या तुमने?”
“चलो ‘ध्यान’ से पोंछा लगाओ।”
‘ध्यान’ से मतलब है कि अगर पोंछा भी लगाओ, तो तुम्हें पता होना चाहिए कि पोंछा लगाना कैसे तुम्हें तुम्हारे परम ध्येय की ओर ले जा रहा है। और अगर पोंछा लगाना तुम्हें तुम्हारे ध्येय की ओर नहीं ले जा रहा, तो बंद करो पोंछा लगाना।
कुछ भी मत करो, अगर वो तुम्हें तुम्हारे परम ध्येय की ओर नहीं ले जा रहा — ये ‘ध्यान’ है।
न खाओ, न पीयो, न उठो, न बैठो, न आओ, न जाओ।
और अगर आने-जाने से ‘वो’ मिलता हो, जिसकी वास्तव में तुम्हें चाह है, जो तुम्हारा परम लक्ष्य है, तो ज़रूर आओ, ज़रूर जाओ।
ये ‘ध्यान’ है।
क्यों देख रहे हो टी. वी.। और अकसर टी.वी. देखते हुए तुम बड़े ध्यानस्थ हो जाते हो। ये तुम्हारे ही शब्द हैं। है न? कहते हो, “दो साल का टिंकू है मेरा, और चार साल की टिंकी। और दोनों बड़े ‘ध्यान’ से टी.वी. देखते हैं।” ऐसी तो भाषा है कि — “टिंकू और टिंकी बड़े ‘ध्यान’ से टी.वी. देख रहे हैं।”