ध्यान करने बैठते हैं तो मन भटकने क्यों लग जाता है?
प्रश्न: ध्यान करने बैठते हैं तो मन भटकने क्यों लग जाता है? क्या किया जाए कि ध्यान बना रहे?
आचार्य प्रशांत: उन विषयों में चले जाइए और देखिए कि उनमें ऐसा क्या ख़ास है कि आप आकर्षित हो जाते हैं।
वो विषय ही तो आपका जीवन हैं, उन्हीं में ज़िंदगी गुज़ार रहे हो चौबीस घंटे। वही विषय आप पर हावी हैं, वही विषय आपकी पूरी ज़िंदगी संचालित कर रहे हैं। तो ज़ाहिर-सी बात है, वो विषय, आप किसी भी क्रिया में बैठें, आप किसी भी प्रयोजन से बैठें, आपको बार-बार पकड़ने भी चले आएँगे। तो किसी भी क्रिया में बैठने से अच्छा है उन विषयों का ही परीक्षण कर लिया जाए।
जो विषय इतने ताकतवर हैं कि आपको बार-बार घसीट ले जाते हैं अपने साथ, उनको थोड़ा जाँच-परख तो लीजिए, बात तो कर लीजिए कि — “क्या दोगे मुझे?”
“चलो चले चलता हूँ तुम्हारे साथ।”
“बुला रहे हो, चलो चलता हूँ तुम्हारे साथ।”
“हाँ बताओ, क्या दे रहे हो मुझे।”
और ये सवाल पूछने के लिए ध्यान में बैठने की ज़रुरत भी नहीं है क्योंकि वो विषय आपको मात्र ध्यान के समय ही थोड़े ही आक्रान्त किए हुए हैं।
हमने कहा कि वो विषय तो आपको दिनभर घेरे हुए हैं। तो पूछिए, “दिनभर जैसे जी रहा हूँ, तो क्यों जी रहा हूँ?” उन विषयों को ताकत, प्रधानता, आपने ही तो दी है। आपने ही तो निर्णय किया है कि — “ये विषय महत्वपूर्ण हैं, मुझे इन्हीं से लिप्त रहना है।”