धोखा देकर शारीरिक संबंध बनाने वाले

अपने आप को जानो और ज़िन्दगी का मकसद समझो। ज़िन्दगी खत्म करने की बात भी तुम्हारे मन में इसीलिए उठ रही है क्योंकि तुमने ज़िन्दगी को शरीर से बहुत ज़्यादा जोड़ कर देख लिया है। देखो, एक ही ग़लती है जो पहले भी करी थी और अब भी दोहरा रही हो। पहले तुमने बहुत कीमत दे दी उस आदमी के शरीर को। तुम यहाँ लिख तो रही हो कि उसका आकर्षक व्यक्तित्व, प्यारी बातें, इसका बहुत बड़ा हिस्सा तो शरीर ही होता है न? दिखने में अच्छा रहा होगा। होगा लम्बा-चौड़ा, गोरा-चीटा, घुँघराले बाल वगैरह-वगैरह, और ये सब। तो तुमने बहुत कीमत दे दी उसके शरीर को कि शरीर से आकर्षक दिखता है तो तुमने उसको अपने जीवन में आने दिया। और अब दूसरी ग़लती ये कर रही हो कि तुम अपने शरीर को बहुत कीमत दे रही हो। शरीर को खत्म करने का ख्याल भी यही बताता है कि तुम अपने आप को शरीर ही मानते हो। तभी तो कहते हो कि — “मैं खत्म हो जाऊंगी,” जबकि वास्तव में तुम किसको खत्म कर रहे हो? सिर्फ शरीर को। राख तो शरीर होगा। वही गलती दोबारा कर रही हो जो पहले की थी।

ज़िन्दगी इन सब चीज़ों के लिए नहीं होती भई। जो लोग देह भाव में जीते हैं, उनका वही अंजाम होता है जो तुम्हारा हो रहा है। वो दूसरों की देह को देखकर फँस जाते हैं और फिर अपनी ही देह को कष्ट देते हैं। ये दो तरफा उन पर चोट पड़ती है। ज़िंदगी शरीर बन कर मत गुज़ार दो। वो बर्बादी है। जानो कि तुम इसलिए हो ताकि तुम मानसिक तौर पर ऊँचे-से-ऊँचा उठ सको और यही जीने का मकसद होता है। हम इसलिए नहीं पैदा हुए हैं कि अपना शरीर चमकाएंगे, दूसरों का शरीर भोगेंगें या दूसरों के भोग का कारण बनेंगे। हम इसलिए पैदा हुए हैं ताकि चेतना के तल पर, समझदारी के तल पर, होश के तल पर ऊँचे-से-ऊँचा उठ सकें।

अब बताओ कि अगर तुमको चेतना के तल पर ऊँचा उठना है तो तुम्हारे साथ ये जो घटना घटी, ये क्या वाक़ई एक हादसा है या छुपा हुआ वरदान? इस घटना से तो तुम बहुत बड़ा सबक भी सीख सकती हो न? ये घटना शायद घटी ही इसीलिए हो ताकि जो पाठ तुम बीस साल में नहीं सीख पातीं वो तुम एक साल में ही सीख जाओ। तो समझाने वाला तो तुमको फास्ट ट्रैक प्रमोशन दे रहा है, कह रहा है कि जल्दी से तुमको बेहतर बना दें, जल्दी से तुमको उत्तीर्ण करके आगे वाली कक्षा में पहुँचा दें, और तुम समझ ही नहीं रही कि तुमको क्या भेंट मिल रही है। तुम दुःखी हो रही हो, डिप्रेस्ड हो रही हो।

अच्छा ये बताओ, कहती हो कि डिप्रेस्ड हो रही हो, शरीर डिप्रेस्ड हो रहा है क्या, बताना? शरीर में कहाँ-कहाँ डिप्रेशन आ गया? ये सारी तकलीफ इसलिए है न क्योंकि मन बुरा मान रहा है? ये भी अगर कह रही हो कि — “मेरे शरीर का इस्तेमाल कर लिया किसी ने,” तो बुरा किसको लग रहा है? शरीर को? नहीं, मन को। तो माने समस्या सारी कहाँ है? मन में। पर मन की तो तुम बात ही नहीं कर रहीं। ना…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant