धार्मिक किताबें सीधी भाषा में क्यों नहीं होतीं?

प्रश्नकर्ता: धार्मिक ग्रंथों में बातें इतनी काव्यात्मक ढंग से क्यों कही जाती हैं? आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ते समय हम पता कैसे करें कि हमने श्लोक का मूल अर्थ समझ लिया है?

आचार्य प्रशांत:

आध्यात्मिक है अगर ग्रंथ, तो श्लोक तुम से शुरू होता है और अनंत तक जाता है। श्लोक अपने आप में एक पूरा विस्तार होता है।

भाषा के तल पर वह तुम से जुड़ा हुआ है और अंत के तल पर, उद्देश्य के तल पर, वह अनंत तक जाता है।

तुम पूछ रहे हो कि, “मैं कैसे पता करूँ कि मैंने श्लोक समझ लिया?” ‘श्लोक समझ लिया’ का अर्थ होगा कि तुम श्लोक के अंत तक पहुँच गए, और श्लोक का अंत तुम्हारा अपना अंत होता है। तो तुम्हें कैसे पता चलेगा कि तुमने श्लोक समझ लिया? अगर तुम अभी बचे हुए हो यह सवाल करने के लिए कि “श्लोक समझा कि नहीं समझा मैंने?” तो अभी तुमने कुछ नहीं समझा। जिसने श्लोक समझ लिया, उसका अंत हो जाता है, क्योंकि श्लोक का काम ही है तुम्हें अंत तक ले कर जाना। इसीलिए श्लोक कभी समझ नहीं लिया जाता; श्लोक का निरंतर पाठ किया जाता है। श्लोक कोई एक चीज़ नहीं है कि तुम्हारे पकड़ में आ जाएगी। श्लोक एक यात्रा है पूरी तुम से लेकर अनंत तक की। अनंत ही उसका अंत है।

श्लोक एक यात्रा है, तुम शुरू करोगे, तो शब्द ही तो हैं कुछ, उन शब्दों को तुम पढ़ लोगे। अगर तुम्हारी भाषा में हैं, तो तुम यूँ ही उसका अर्थ कर लोगे। संस्कृत में हैं तो अनुवाद पढ़ लोगे। हो गई शुरुआत! लेकिन बस शुरुआत भर हुई है, अभी वह श्लोक तुम्हारे ही तल का है। तुम्हें…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org