धार्मिक किताबें सीधी भाषा में क्यों नहीं होतीं?
आध्यात्मिक है अगर ग्रन्थ तो श्लोक से शुरु होता है और अनंत तक जाता है, श्लोक अपने आपमें एक पूरा विस्तार होता है। भाषा के तल पर वो तुमसे जुड़ा हुआ है, और अंत के तल पर, उद्देश्य के तल पर, लक्ष्य के तल पर, वो अनंत तक जाता है।
श्लोक समझ लिया का अर्थ होगा कि तुम श्लोक के अंत तक पहुँच गए और श्लोक का अंत तुम्हारा अपना अंत होता है तो तुम्हें कैसे पता चले कि तुमने श्लोक समझ लिया? अगर तुम अभी बचे हुए हो ये सवाल करने के लिए तो ये मानो कि अभी तुमने श्लोक नहीं समझा। जिसने श्लोक समझ लिया उसका अंत हो जाता है, क्योंकि श्लोक का काम ही है तुम्हें अंत तक लेकर के जाना। इसीलिए श्लोक कभी समझा नहीं जाता, श्लोक का निरंतर पाठ किया जाता है।
श्लोक एक यात्रा है, तुमसे लेकर अनंत तक की, अनंत ही उसका अंत है। श्लोक का आखिरी अर्थ यही है कि तुम मिट गए, श्लोक का आखिरी अर्थ यही है कि अर्थ करने वाला कोई नहीं बचा।
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