धागा प्रेम का

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।।

~ रहीम

आचार्य प्रशांत: धागा क्या है? जिसके दो छोर हैं, दो सिरे हैं। दो दूरियों के मध्य जो है, सो धागा।

एक ही दूरी है जीवन में, बाकी सारी दूरियां इस एक दूरी से निकलती हैं। स्वयं की स्वयं से दूरी। मन की मन के स्रोत से दूरी। अहंकार की आत्मा से दूरी। बड़ी झूठी, पर बड़ी विकराल दूरियां हैं ये।…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org